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(७) नैवेद्य पूजा
अणाहारी पद में कर्या, विग्गह गइय अनन्त । दूर करी ते दीजिये, अणाहारी शिव सन्त ॥
सातवीं नैवद्यपूजा मे यह भावना करनी है कि, प्रभु ! नैवेद्य कीमती खाद्य वस्तु है । उस पर आपने निर्वेद (वैराग्य) रखा और वैराग्य का विषय बताया । मुझे भी नैवेद्य पूजा करते हुए मेवा, मिठाई आदि पर वैराग्य अरूचि - नफरत जागे । अथवा ऐसा चिन्तन किया जा सकता है कि, 'आपने नैवेद्य जैसे स्वादिष्ट खाद्य पर से भी आसक्ति उड़ा दी, राग मिटा दिया, तो सामान्य आहार पर तो राग ( आसक्ति ) रहेगी ही कैसे ? आपने अणाहारी पद प्राप्त किया, इसी तरह नैवेद्य पूजा करते हुए मेरा भी राग (आसक्ति) हटे और मैं अणाहारी
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