Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 16
________________ आरंभ – समारंभ में न जायें ।' अथवा ऐसे चिन्तन करना कि, प्रभु ! जिस प्रकार इस धूप से मन्दिर के अन्दर दुर्गन्ध भर गयी हो, तो वह दूर हो । उसी तरह मेरी आत्मा में से मिथ्यात्वरूपी दुर्गन्ध दूर हो और सम्यक्त्व की सुवास फैले ।' प्रतिदिन दिल में ऐसी भावना रखने से इसके संस्कार बढने से हृदय के भावों को नीचे(हल्के) कषायादि में ले जाते हुए जीव हिचकिचायेगा और ऊंचे जिनभक्ति, दया, क्षमादि में अपने भाव ले जाएगा। (५) दीपक पूजा द्रव्य दीप सुविवेक थी, करता दुःख होय फोक । भाव प्रदीप प्रगट हुए, भासित लोकालोक ॥ पाँचवी दीपक पूजा में ऐसी भावना करनी है कि, प्रभु ! जिस प्रकार यह दीपक घी और वाट में से जन्मा होने पर भी इन Jan Education International Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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