Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 4
________________ अष्टप्रकारी पूजा का अद्भुत रहस्य __ भाव-शून्य क्रिया रस निकाले हुए गन्ने जैसी है। भावयक्त थोडी-सी भी क्रिया रस से भरी गंडेरी जैसी है । तीर्थंकर भगवान की पूजा की क्रिया में, साथ में हृदय के भाव न मिलाये जायें, तो उसका क्या महत्व रहेगा ? कितना फल मिलेगा ? प्रतिदिन भगवान की पूजा करते रहें, परंतु भावोल्लास न हो, तो मामुली फल मिलता है । कई दिनों की मेहनत नगण्य फल दे जाती है । यह कैसा करुण चित्र है? खूबी तो यह है कि, यह पूजन-क्रिया ऐसे सुन्दर भावों को हृदय में उछालने हेतु जबरदस्त साधन है, जो भाव लाने का सामर्थ्य सांसारिक क्रिया में नहीं । दूसरी दानादि क्रियाओं में भी ऐसा सामर्थ्य नहीं। जिनपूजन की खास क्रिया में, तथा प्रकार के भाव पैदा करने की ताकत है। पूजा के आलंबन से ही ऐसे भाव उछल सकते हैं । Jain Education Internationat Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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