Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 11
________________ आज तक मेरे हृदय सिंहासन पर मोहराजा राजा के रुप में स्थापित था; और उसकी आज्ञा मुझ पर चलती थी। प्रभु ! अब मोहराजा पदभ्रष्ट हुआ । आप मेरे हृदय-सिंहासन पर प्रतिष्ठित हो जाईये और आपकी आज्ञा मेरे जीवन पर चले । __ प्रतिदिन ऐसी भावना रखते हुए अभिषेक पूजा करने से आत्मा में ऐसे संस्कार पैदा होंगे कि, 'अब मेरे जीवन पर मोह की हकमत नही चलेगी, मैं उसकी आज्ञा से बंधा हुआ नही हं । मेरे सर पर है - एक जिन की आज्ञा । यह संस्कार द्रढ होने से सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है। Jain Education Internationat Private 1 Qersonal Use Onlyww.jainelibrary.org

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