Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 12
________________ (२) चन्दन पूजा शीतल गुण जेहमा रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग | आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा - अंग । अब दूसरी चन्दनपूजा में प्रभु को चन्दन से विलेपन करना है । यह करते वक्त मन में यह भावना रखनी है कि प्रभु ! चंदन जलने पर भी सुगंध देता है, घिसने पर भी शीतलता देता है । इस चन्दनपूजा से मैं मांगता हू ं कि, प्रभु ! मैं प्रलोभनों की आग में भी शील और संयम की सुगन्ध से महकुँ, और प्रतिकूलता या अनिष्ट से घिसने पर भी सौम्यता रूपी शीतलता रखुं । रोज ऐसी भावना करते-करते प्रलोभनों के सामने शील - संयम की अभिलाषा और प्रतिकूल जनों के प्रति सौम्यता सतेज बनती जाती है । ऐसे करते-करते इस सुगंध-सुवास के आदर के संस्कार पडते जाते हैं। उसके आदर के संस्कार बढने के बाद उसका विशेष प्रयत्न होता है । 1 Jain Education International Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org

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