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(१) अभिषेक पूजा
जल पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश । जल पूजा फल मुज हजो, मांगो एम प्रभु पास ॥ ज्ञान कलश भरी आतमा, समता रस भरपूर । श्री जिन ने नवरावतां, कर्म थाये चकचूर ॥
जब किसी को राजा बनाना हो, तब अमात्य और सामंत राजा उसके मस्तक पर अभिषेक करते हैं । और घोषणा करते हैं कि, आज से आप राज्य के, हमारे और प्रजा के राजा हैं । उसी प्रकार यहां पर प्रभु के मस्तक पर अभिषेक करते हुए हमारे हृदय सिंहासन पर हम प्रभु को राजा के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं । प्रभु के जन्म के वक्त मेरु शिखर पर ६४ इन्द्र और करोडों देव प्रभु के मस्तक पर अभिषेक करते हैं । अभिषेक पूजा करते वक्त यह भावना रखनी है कि, प्रभु !
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