Book Title: Ashtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan Author(s): Bhuvanbhanusuri Publisher: Divya Darshan Trust View full book textPage 5
________________ पूजा करने पर यह आलंबन तो हाथ में आया, फिर भी इस आलंबन के द्वारा भी भाव से दिल को न रंगा जाय, यह कैसी दुर्दशा। ___ भगवान की पूजा अर्थात् भगवान के चरणों में अपने कीमती द्रव्यों का समर्पण । सबसे पहले तो यह सोचना है कि जिस प्रकार समुद्र में पड़ी हुई पानी की एक बूंद भी अक्षय बनती है, उसी प्रकार जिनेश्वर भगवान के चरणों में अर्पित की हुई थोडी भी लक्ष्मी अक्षयलक्ष्मी बनती है। कुमारपाल महाराजा ने पहले अति गरीब परिस्थिति में भी प्रभु को सिर्फ पांच कौडी के फल खरीदकर चढाये, तो वह अक्षयलक्ष्मी इस तरह से बनी कि उसके बाद के कुमारपाल के भव में १८ देश का राज्य मिला । वह राज्य भी नरक में डुबाने वाला नहिं, लेकिन परस्त्री त्याग, चातुर्मास में पूर्ण ब्रह्मचर्य, परम गृहस्थधर्म, जैनधर्म पर अलौकिक श्रद्धा, प्रबल अर्हद्भक्ति और Jain Education International Private personal Use Onlyww.jainenbrary.orgPage Navigation
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