Book Title: Ashtakprakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 12
________________ [ vili ] कारिकाष्टकम्, ५. भिक्षाष्टकम्, ६. सर्वसम्पत्करीभिक्षाष्टकम्, ७. प्रच्छन्नभोजनाष्टकम्, ८. प्रत्याख्यानाष्टकम्, ९. ज्ञानाष्टकम्, १०. वैराग्याष्टकम्, ११. तपाष्टकम्, १२. वादाष्टकम्, १३. धर्मवादाष्टकम्, १४. एकान्तनित्यपक्षखण्डनाष्टकम्, १५. अनित्यपक्षखण्डनाष्टकम्, १६. नित्यानित्यपक्षमण्डनाष्टकम्, १७. मांसभक्षणदूषणाष्टकम्, १८. मांसभक्षणदूषणाष्टकम्, १९. मद्यपानदूषणाष्टकम्, २०. मैथुनदूषणाष्टकम्, २१. सूक्ष्मबुद्ध्याश्रयणाष्टकम्, २२. भावविशुद्धिविचाराष्टकम्, २३. शासनमालिन्यनिषेधाष्टकम्, २४. पुण्यानुबन्धिपुण्यादिविवरणाष्टकम्, २५. पुण्यानुबन्धिपुण्यप्रधानफलाष्टकम्, २६. तीर्थकृद्दानमहत्त्वसिद्धयष्टकम्, २७. तीर्थकृदाननिष्फलतापरिहाराष्टकम्, २८. राज्यादिदानेऽपि-तीर्थकृतो-दोषाभाव-प्रतिपादनाष्टकम्, २९. सामायिकस्वरूपनिरूपणाष्टकम्, ३०. केवलज्ञानाष्टकम्, ३१. तीर्थकृद्देशनाष्टकम् और ३२. मोक्षाष्टकम् । प्रथम 'महादेवाष्टकम्' में हरिभद्र महादेव ( जिन ) के सद्गुणों, सत्कृत्यों और पूजा स्वरूप का निरूपण करते हैं । महादेव वीतराग हैं और कर्म से अतीत हैं। वे सर्वज्ञ हैं, प्रशान्त और धीमान् हैं, शाश्वत सुख के स्वामी हैं और देवों द्वारा भी पूज्य हैं। महादेव उपदिष्ट आगमों के अनुसार अभ्यास अर्थात् आचरण उनकी सबसे बड़ी आराधना है और उनके उपदेश निश्चय ही संसार-चक्र का अन्त करने वाले हैं। द्वितीय 'स्नानाष्टकम्' में द्विविध स्नान - द्रव्य और भाव रूप - जो जैनेतर परम्पराओं में क्रमश: बाह्य और आध्यात्मिक स्नान कहे जाते हैं – का निरूपण है । यद्यपि द्रव्य स्नान शरीर के अङ्ग-विशेष की क्षणिक शुद्धि का ही कारण है, फिर भी भाव शुद्धि का निमित्त है । स्नान के पश्चात् देव एवं श्रमणादि की पूजा करने वाले गृहस्थ का द्रव्य स्नान भी शुभ है। द्रव्य स्नान श्रमणों के लिए निषिद्ध है। उन्हें ध्यानरूपी जल से भाव स्नान करने का उपदेश है। सच्चे अर्थों में स्नातक वही है जो स्नान द्वारा समस्त मल से रहित हो जाता है और पुन: मलिन नहीं होता । ___ तृतीय 'पूजाष्टकम्' में द्विविध पूजा - द्रव्य और भाव का वर्णन है। द्रव्य पूजा स्वर्ग और भाव पूजा मोक्ष की साधनिका है। इसे क्रमश: अशुद्ध और शुद्ध पूजा भी कहा जाता है। द्रव्य पूजा अष्ट प्रकारी होती है, जाति ( चमेली ) आदि पुष्पों से सम्पादित की जाती है और शुभ बन्ध का कारण है। भाव पूजा या शुद्ध पूजा - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, गुरुभक्ति, तप और ज्ञान रूपी - आठ भाव पुष्पों से सम्पन्न की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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