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१७ मासभक्षणदूषणाष्टकम् भक्षणीयं सता मांसं प्राण्यङ्गत्वेन हेतुना ।
ओदनादिवदित्येवं कश्चिदाहातितार्किकः ॥ १ ॥
कुछ अतितार्किक ( शुष्क बुद्धिवादी बौद्ध ) कहते हैं कि भात आदि के सदृश्य ही मांस भी भक्षणीय है, क्योंकि दोनों ही प्राणी के अवयव
भक्ष्याभक्ष्यव्यवस्थेह शास्त्रलोकनिबन्धना । सर्वैव भावतो यस्मात्तस्मादेतदसाम्प्रतम् ॥ २ ॥
भक्षणीय ( ओदनादि ) और अभक्षणीय ( मांस आदि ) - इस व्यवस्था अर्थात् मर्यादा का हेतु शास्त्र और लोक-व्यवहार है और यह सर्वथा भाव ( मनोवृत्ति ) की अपेक्षा से है। इस कारण प्रस्तुत प्रसङ्ग में दोनों प्राणी के अङ्ग हैं - यह हेतु युक्तिसङ्गत नहीं है ॥ २ ॥
तत्र प्राण्यङ्गमप्येकं भक्ष्यमन्यत्तु नो तथा । सिद्धं गवादिसत्क्षीररुधिरादौ तथेक्षणात् ॥ ३ ॥
वहाँ शास्त्र और लोकव्यवहार में भी प्राणियों के कुछ अङ्ग भक्ष्य हैं जब कि कुछ अभक्ष्य हैं। गाय-भैंस आदि का अवयव दूध भक्ष्य होने से
और रुधिर, मल-मूत्र आदि अभक्ष्य होने से यह सिद्ध है। इस व्यवस्था का हेतु भिन्न है ॥ ३ ॥
प्राण्यङ्गत्वेन न च नोऽभक्षणीयमिदं मतम् । किन्त्वन्यजीवभावेन तथा शास्त्रप्रसिद्धितः ॥ ४ ॥
जैन मत में मांस को अभक्ष्य इसलिए नहीं स्वीकार किया गया कि वह प्राणी का अङ्ग है। मांस को स्वयं ही जीवों का पिण्ड होने से और
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