Book Title: Ashtakprakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 182
________________ 132 अष्टकप्रकरणम् अष्टकाख्यं प्रकरणं कृत्वा यत्पुण्यमर्जितम् । 'विरहात्तेन पापस्य भवन्तु सुखिनो जनाः ॥ १० ॥ अष्टक नामक प्रकरण ( की ) रचनाकर जो पुण्य अर्जित किया है, उस पुण्य द्वारा पाप-विरह ( विनाश ) से ( सम्पूर्ण ) लोग सुखी हों ॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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