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सामायिकस्वरूपनिरूपणाष्टकम् सामायिकं च मोक्षाङ्गं परं सर्वज्ञभाषितम् । वासीचन्दनकल्पानामुक्तमेतन्महात्मनाम् ॥ १ ॥
सर्वज्ञ प्रणीत, मोक्ष का प्रधान कारण यह सामायिक काटने वाली कुल्हाड़ी को भी सुवासित करने वाले चन्दन वृक्ष के समान अपकारी के प्रति भी उपकार करने वाले महात्मा पुरुषों को ही प्राप्त होती है ॥ १ ॥
निरवद्यमिदं ज्ञेयमेकान्तेनैव तत्त्वतः ।। कुशलाशयरूपत्वात्सर्वयोगविशुद्धितः ॥ २ ॥
इस सामायिक चारित्र को शुभ परिणामरूप होने से तथा मन, वचन, काय - इन तीनों योगों की शुद्धिरूप होने से सर्वथा निष्पाप जानना चाहिये ॥ २ ॥
यत्पुनः कुशलं चित्तं लोकदृष्टया व्यवस्थितम् । तत्तथौदार्ययोगेऽपि चिन्त्यमानं न तादृशम् ॥ ३ ॥
( सामायिक मोक्ष का कारण है ) अत: जो लोकदृष्टि से शुभ मन रूप प्रतिष्ठित है वह लौकिक उदारता वाला हो भी तो उसे सामायिक युक्त नहीं समझना चाहिए ।। ३ ॥
मय्येव निपतत्वेतज्जगदुश्चरितं यथा ।। मत्सुचरितयोगाच्च मुक्तिः स्यात्सर्वदेहिनाम् ॥ ४ ॥
जैसा कि बोधिसत्व बुद्ध ने कहा - "जगत् के जीवों का सारा दुश्चचरित मेरे में आ जाय और मेरे सुचरित्र के योग से सभी प्राणियों को मोक्ष मिले ॥ ४ ॥
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