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मोक्षाष्टकम् कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षो जन्ममृत्य्वादिवर्जितः ।। सर्वबाधाविनिर्मुक्त एकान्तसुखसङ्गतः ॥ १ ॥
जन्म-मरणादि से रहित, सब प्रकार की बाधाओं से मुक्त और एकान्तिक आनन्द से युक्त मोक्ष सम्पूर्ण कर्मों के क्षय से होता है ॥ १ ॥
यन्न दुःखेन सम्भिनं न च भ्रष्टमनन्तरम् । अभिलाषापनीतं यत् तज्ज्ञेयं परमं पदम् ॥ २ ॥
जो दुःख-मिश्रित नहीं है, उत्पन्न होने के बाद नष्ट भी नहीं होता और कामनारहित है, उसे परमपद या मोक्ष कहते हैं ॥ २ ॥
है
कश्चिदाहानपानादिभोगाभावादसङ्गतम् सुखं वै सिद्धनाथानां प्रष्टव्यः स पुमानिदम् ॥ ३ ॥ किम्फलोऽन्नादिसम्भोगो बुभुक्षादिनिवृत्तये । तन्निवृत्तेः फलं किं स्यात्स्वास्थ्यं तेषां तु तत्सदा ॥४॥
किसी का आक्षेप हो सकता है कि अन्न-पानादि के भोग के अभाव में सिद्धों को सुख मानना असङ्गत है, तो उस पुरुष से यह पूछना चाहिए कि अन्नादि के भोग का फल क्या है ? तो उसका उत्तर होगा, भूखादि दूर करना। उसे पुनः पूछना चाहिये कि क्षुधादि की निवृत्ति का फल क्या है ? उसका उत्तर होगा, स्वास्थ्य; तो सिद्धों का स्वास्थ्य तो सदा उत्तम ही होता है ॥ ४ ॥
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