Book Title: Arhat Vachan 2003 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 11
________________ अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 15, अंक - 4, 2003, 9 - 16 कागदीपुरा (नालछा) में ही पंडित आशाधरजी द्वारा निर्मित विद्यापीठ -नरेशकुमार पाठक * सारांश 23 अक्टूबर 2003 को नालछा के समीप कागदीपुरा से भगवान नेमिनाथ की 13 वीं शती की एक पद्मासन सांगोपांग प्रतिमा प्राप्त हुई। इस प्रतिमा के प्राप्ति स्थल के ऐतिहासिक सन्दर्भो एवं पुरातात्विक अवशेषों का विश्लेषण प्रस्तुत आलेख में किया गया है। सम्पादक नालछा धार जिले की धार तहसील के माण्डव से 10 कि.मी. एवं धार से 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह 22°16' उत्तरी अक्षांस 75°29' पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। नालछा के अवशेषों में प्राचीनतम अवशेष के रूप में जैन तीर्थंकर नेमिनाथ की उत्कीर्ण प्रतिमा, जो कुक्षी से प्राप्त हुई थी, के लेख पर मण्डापिका दुर्ग में प्रतिमा दान का उल्लेख है। यह प्रतिमा लगभग 6ठी शती ईस्वी की है। धार से 20 कि.मी. धार माण्डव मार्ग पर लुनेरा (लुन्हेरा) ग्राम स्थित है। यह 22°28' उत्तरी अक्षांस व 75°25' पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। इस गाँव के पास मानसरोवर तीर्थ स्थल स्थित है। गाँव के दक्षिण पश्चिम में अवश्य जैन मूर्तियाँ मिली हैं। पठार में नीचे उतरते ही तलहटी में मेवाड़ से आये हुए लोगों की एक बस्ती भी मिली है, जिसकी पहचान माण्डल दुर्ग के रूप में की जा रही है। यहाँ एक मडलासी तालाब भी है। इस स्थल से पश्चिम में कुंजड़ा खोपडा (खाई) एवं चमार डांग क्षेत्र में प्राचीन काल के रिहायशी मकानों के अवशेष मिले हैं। मण्डल दुर्ग मूलत: राजस्थान के उदयपुर से 161 कि.मी. है। यह एक पर्वतीय शिखर पर आधा मील के क्षेत्र में विस्तारित था और अपनी गोलाकार आकृति के कारण मण्डलाकार नाम से भी जाना जाता था, राजस्थान पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भीषण विनाश किया और चारों ओर आतंक फैला दिया। माण्डल दुर्ग भी मोहम्मद गौरी द्वारा जब जीत लिया गया तो प्रसिद्ध जैन विद्वान आशाधरजी अपने 1700 साथियों को साथ लेकर मालवा के परमार शासक विन्ध्य वर्मन के संरक्षण में चले आये, उन्होंने धार व माण्डु के मध्य स्थित नालछा ग्राम को अपना स्थायी निवास बनाने का निश्चय किया, पं. आशाधर परवर्ती परमार शासक सुभट वर्मा एवं जयतुंग देव के भी समकालीन रहे। आशाधर का पुत्र भी परमार शासकों की सेवा में था। नालछा के समीप आशाधर का निवास अज्ञात था। मई - जन 1982 में राष्ट्रीय सेवा योजना के शिविर में एक स्थान खोज निकाला गया जहाँ पर कुछ समय पूर्व तक सौड़पुर के जागीरदारों का दरबार लगता था। यहाँ आम वृक्षों से घिरा 7x7 वर्ग मीटर का एक ओटला (चबूतरा) है, इसी स्थान के समीप पूरी हुई एक बावड़ी है, जिसकी प्राचीर में प्रस्तर पर 'माण्डल' शब्द खुदा हुआ है। स्थानीय लोगों से ज्ञात हुआ कि यहाँ पर एक छोटा सा दुर्ग था जिसकी प्राचीरें दक्षिण में कूजंडा खोदड़ा, पश्चिम में चमार डांग एवं उत्तर में मानसरोवर तक विस्तृत थी। तालाब वाले इस क्षेत्र के उस पार जैन मन्दिर के अवशेषों के ढेर पड़े हैं, उनमें से मन्दिर के पत्थरों और अनेक जैन तीर्थंकरों की खण्डित प्रतिमाओं को कृषकों ने अपने खेतों में मेड़ें पर लगा रखा है। * संग्रहाध्यक्ष, जिला पुरातत्व संग्रहालय, हिन्दूपति महल, पन्ना (म.प्र.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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