Book Title: Arhat Vachan 2003 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 102
________________ 6. श्री फरहत कुरैशी, भोपाल, जेनोलॉजी - जेन सूचना तंत्र की आवश्यकता 7. कु. सुधि अग्रवाल, भोपाल, जैन साहित्य के प्रसार में मीडिया 8. कु. दीपा दास, कोलकाता, जैन धर्म की ऐतिहासिकता 9. कु. कृष्णाराय (बंगला देश मूल की शोध छात्रा), कोलकाता एवं संचयिका मुखर्जी, कोलकाता, जैन पाण्डुलिपियों में कम्प्यूटर अनुप्रयोग समापन समारोह के मुख्य अतिथि अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष माननीय श्री इब्राहीम कुरैशी ने कहा कि जैन साहित्य के धर्मग्रन्थों में विश्व दर्शन का सार समाया हुआ है। आपने कहा कि जैन धर्म की बागडोर सियासी हाथों में नहीं पहुँची है। जैन मुनि ही इसको सहेजे हए हैं। इसलिये इसकी करनी कथनी में कोई फर्क नहीं है। समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए इन्द्रप्रस्थ वि.वि., दिल्ली के कुलसचिव प्रो. नलिन के. शास्त्री ने कहा कि संस्थाओं को समर्पण भाव से पुनर्जागरण की ओर ले जाना होगा क्योंकि संस्थाएँ इमारत बनाने से नहीं चलती है वरन मनुष्यों के समर्पण से चलती है। विशिष्ट अतिथि प्रो. बी. के. जैन (सागर वि.वि.), सेल्सटेक्स कमिश्नर श्री चौहान (मेरठ), मजिस्ट्रेट श्री मुकेश डांगी (डबरा) थे। इस अवसर पर सोनागिर कमेटी के मंत्री श्री ज्ञानचन्द जैन, संस्कृति संरक्षण संस्थान, दिल्ली के कार्यकर्ताओं सहित संगोष्ठी संयोजक डॉ. संजीव सराफ को सम्मानित किया गया। डॉ. सराफ ने इस सम्मान का श्रेय जैनोलॉजी के क्षेत्र में लाने वाले अपने गुरु डॉ. अनुपम जैन को दिया, जिनकी प्रेरणा, सहयोग से ही वे इस ओर मुड़े हैं। संगोष्ठी में पधारे विद्वानों के मध्य विचार - विमर्श से निम्न निष्कर्ष प्राप्त हुए - 1. संगोष्ठी में पधारे समस्त विद्वानों के नाम - पते, पठित शोध पत्र के शीर्षक सहित एक विस्तृत रिपोर्ट यथाशीघ्र तैयार कर सभी सहभागियों को उपलब्ध कराई जाये जिससे वे परस्पर सम्पर्क कर इस रूचि को बढ़ा सकें। 2. समस्त पठित शोधपत्रों को सम्पादित कर आगामी 3-4 माह में प्रोसीडिंग्स प्रकाशित कर दी जाये। डॉ. संजीव सराफ को यह दायित्व सौंपा गया। 3. इस संगोष्ठी में सम्मिलित विद्वानों में से अधिकांश जैन विद्या के अध्ययन के क्षेत्र में बहुश्रुत नहीं हैं। इनकी रूचि को वृद्धिंगत करने हेतु प्रति वर्ष जैन पुस्तकालयों एवं शोध संस्थानों पर संगोष्ठी आयोजित की जाये। इससे जैन धर्म/दर्शन के प्रचार हेतु प्रतिभा सम्पन्न विद्वानों का सहयोग मिल सके। 4. मीडिया से सतत सम्पर्क रखकर उसका उपयोग करने की दृष्टि से एक कार्य दल गठित करने का भी निर्णय किया गया।। श्रुत संवर्द्धन संस्थान की ओर से आख्या के प्रकाशन एवं प्रतिवर्ष संगोष्ठी के आयोजन की घोषणा की गई। अन्य निष्कर्षों पर भी सहमति व्यक्त की गई। संगोष्ठी से सम्बद्ध कतिपय चित्र आगामी पृष्ठों पर दृष्टव्य हैं। *मानद सचिव, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ (शोध संस्थान) 584, महात्मा गांधी मार्ग, तुकोगंज, इन्दौर - 452001 96 अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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