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अर्हत् वचन।
मत - अभिमत वैसे तो आपके सम्पादकत्व में प्रकाशित 'अर्हत् वचन' का मैं नियमित पाठक हूँ। पर आपने जनवरी - जून 2003 अंक में जो 14 वर्षों के सम्पूर्ण आलेखों का विविधता के साथ विवरण और वह भी वर्षानुसार, विषयानुसार तथा लेखकानुसार दिया है, साथ ही पुरस्कृत लेखों की अलग से सूची देने से आपकी विद्वत्ता में चार चाँद लगे हैं। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये, वह दम ही होगी। और फिर जुलाई - सितम्बर 2003 अंक भी आज मिला। इसमें श्री सूरजमलजी बोबरा का आलेख जिसमें धार की भोजशाला का विस्तृत विवरण इस पुष्टि के साथ कि ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित वाग्देवी सरस्वती की प्रतिमा धार भोजशाला की जैन परम्परा की मूर्ति है। इससे यह प्रमाणित
है कि जिस भोजशाला की आज चर्चा है वह एक समय जैन समाज का पूजनीय स्थल था। इसके साथ ही श्री अनिलकुमार जैन का 'व्रत उपवास - वैज्ञानिक अनुचिंतन', श्री पारसभल अग्रवाल का 'आत्मज्ञान', श्री अजितकुमार जैन का ‘णमोकार महामंत्र - एक वैज्ञानिक अनुचिंतन' आदि अनेक आलेख प्रकाशित कर आपने अध्येताओं और शोधार्थियों का बहुत उपकार किया है। इस प्रकार की विलक्षण प्रस्तुति के लिये आपको मेरी हार्दिक बधाई।
. माणिकचन्द जैन पाटनी 15.09.03
अध्यक्ष - दिगम्बर जैन महासमिति मध्यांचल, इन्दौर
N aकुन्द नयी यो SUNDAKINDAJRAKAPITALIRODHES.
अर्हत् वचन का जुलाई-सितम्बर 03 अंक मुझे प्राप्त हुआ। इसमें प्रकाशित सकल सन्दर्भ शोध मूलक है। विशेषत: 'व्रत - उपवास : वैज्ञानिक अनुचिन्तन', 'अण्डाहार : धर्मग्रन्थ और विज्ञान'
और 'विज्ञान एवं नेतृत्व के प्रतीक - गणेश' लेख अत्यन्त उपयोगी हैं। इन लेखों के प्रकाशित होने से पाठक समाज अवश्य प्रभावित होगा। विश्व कल्याण निमित्त इस तरह का प्रयास उत्तम एवं प्रशंसनीय है।
. प्रो. विश्वनाथ स्वाई
विभागीय प्रमुख - धर्म शास्त्र विभाग, श्री जगन्नाथ वेद कर्मकाण्ड महाविद्यालय, स्वर्गद्वार मार्ग, पुरी-752001 (उड़ीसा)
आपने एक महत्वपूर्ण शोध पत्रिका को सार्थक और सकारात्मक समकालीन जमीनी कोशिश प्रदान की है। इसका अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप निर्मित होता जा रहा है। यह संपादक की पत्रिका न बनकर विद्वानों, शोधकों, संस्कृति प्रेमियों की पत्रिका रही है। 15 वर्ष से अद्वितीयता व सर्वश्रेष्ठ होने की मोहर स्पष्ट तौर पर लग रही है। पत्रिका को प्राणवंत बनाने में काकाजी का संरक्षण भी उल्लेखनीय है। इस अंक में जर्नल की जगह बुलेटिन शब्द का चयन समीचीन है। उत्तम संपादकीय के लिये साधुवाद। नायाब आलेखों के चयन में आपको महारथ हासिल है।
डा. अभयप्रकाश जैन 15.09.03
एन- 14, चेतकपुरी, ग्वालियर -474009
अर्हत् वचन के वर्ष 15 का अंक 3 मिला और उसमें आपने मेरे आलेख 'अकबर और जैन धर्म' को स्थान दिया, एतदर्थ आभारी हूँ। विविध ज्ञानवर्द्धक सामग्री संजोये पत्रिका की नयनाभिराम प्रस्तुति का श्रेय आपको है। बधाई स्वीकार करें।
मालवांचल में यत्र - तत्र प्रतिष्ठित रही जैन सरस्वती की मूर्तियों के विषय में श्री सूरजमल बोबरा के आलेख और कवि द्विजदीन की सुहेलबावनी विषयक श्री पुरुषोत्तम दुबे के आलेख ने मन मोहा।
- डॉ. रमाकान्त जैन 17.9.03
ज्योति निकुंज, चारबाग, लखनऊ-226 004 अर्हत् वचन, 15 (4), 2003
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