Book Title: Arhat Vachan 2003 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 127
________________ RECERATI अहत वचन मत - अभिमत ___ अर्हत् वचन का जनवरी - जून 2003 अंक प्राप्त हुआ है। अंक बहुत उपयोगी है तथा शोधार्थियों को संदर्भ ग्रन्थ के रूप में इससे विशेष लाभ मिलेगा। चौदह साल का पूरा लेखा-जोखा इसमें आ गया है। लेखों की विषयानुसार सूची में पहले अकारादि क्रम में लेख का नाम होता तथा उसके बाद लेखक का नाम होता और फिर प्रकाशन वर्ष तथा क्रमांक इत्यादि होते तो मेरे विचार से अधिक अच्छा रहता। फिर भी कुल मिलाकर एक अच्छा प्रयास हुआ है। इसके लिये बधाई स्वीकार करें। . डॉ. अनिलकुमार जैन प्रबन्धक - तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग 14.08.03 सूर्य नारायण हाउसिंग सोसायटी, विसत पेट्रोल पम्प के सामने, अहमदाबाद अर्हत् वचन के 15 वें वर्ष में प्रवेश पर प्रकाशित पिछले 14 वर्षों का संक्षिप्त लेखाजोखा प्रकाशित कर आपने एक अविस्मरणीय सद्कार्य किया है जो संग्रह और सन्दर्भ की दृष्टि से सृजन, अध्ययन, अनुसंधानकर्ताओं के लिये एक मार्गदर्शन का कार्य रहेगा। अपने नाम के अनुरूप कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा अर्हत् वचन के रूप में यह पुरुषार्थ, धर्म, दर्शन और इतिहास संस्कृति के लिये एक रचनात्मक कार्य है, विशेषकर जैन दर्शन, धर्म, साहित्य हेतु मालवांचल ही नहीं समूचे हिन्दी जगत की एक सराहनीय कृति है। इस धर्म यज्ञ में मैं भी मानसिक रूप से तथा किंचित लेखक - पाठक की दृष्टि से इससे जुड़ा रहा हूँ। इस कृति की प्रस्तुति के लिये माननीय देवकुमारसिंहजी कासलीवाल एवं निष्ठा और दृढ़ संकल्प के धनी डॉ. अनुपम जैन साधुवाद के पात्र हैं। सदैव ही प्रगति पथ पर मार्ग प्रशस्त करती रहे यह कालजयी रचना, इसी सद्भावना साहित। 19.08.03 - डॉ. शचीन्द्र उपाध्याय वरिष्ठ आचार्य, इतिहास विभाग, माधव महाविद्यालय, उज्जैन अर्हत् वचन, वर्ष 15, अंक 1-2 की प्रति प्राप्त हुई। यह देखकर प्रसन्नता हुई कि आपके संरक्षण में पत्रिका में 14 वर्षों से प्रकाशित निबन्धों की सूची वर्षानुसार, विषयानुसार एवं लेखकानुसार तैयार की गई। यह अपने में शोधपूर्ण कार्य ही है, जो सराहनीय तो है ही, साथ ही शोधकर्ताओं के लिये अति उपयोगी है। आवश्यकतानुसार जिन व्यक्तियों को जिन विषयों से अभिरूचि होगी, वे तत्संबंधी निबंधों को आसानी से खोज निकालेंगे तथा लाभान्वित होंगे। ऐसी सूची के प्रकाशन के लिये आप बधाई के पात्र हैं तथा इस कार्य के लिये हार्दिक धन्यवाद है। साथ ही ज्ञानपीठ की प्रगति - गतिविधि के सम्बन्ध में भी एक ही जगह सारी सूचनाओं की भी इस अंक से जानकारी मिल जायेगी। इसी तरह अर्हत् वचन एवं ज्ञानपीठ दिन - ब - दिन प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहें तथा शिक्षित समाज को प्रेरणा प्रदान करते रहें, यह हार्दिक शुभकामना है। जहाँ तक सम्भव होगा, मैं भी सहयोग करने का प्रयास करूँगा। 20.08.03 - डॉ. परमेश्वर झा सेवानिवृत्त प्राचार्य, सरस्वती सदन, विद्यापुरी, सुपोल-852 131 Having gone through Jan. -Jun. 03 issue of 'ARHAT VACANA'. I am very much inclined to endorse the sentiments expressed by respected Kaka Sahib in the 'Preface that this indeed is the outcome of the personalised attention and sustained efforts undertaken by Dr. Anupam Jain in the documentation of such an exclusive compendium. Precisely the spectrum of topics being too wide, yet presentation has been nicely made that one can identify the item of intertest conveniently. 22.08.03 Kokal Chand Jain, Jaipur अर्हत् वचन, 15 (4). 2003 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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