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परिशिष्ट-प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन अभिनन्दन समारोह आलेखों के संकलन को भी प्रकाशित किया जाना चाहिए।
तीर्थकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ के परामर्शदाता कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्रकुमार जैन, हसितनापुर ने प्राचार्यजी को विद्वानों का विद्वान निरूपित किया तथा जैन धर्म के प्रति उनके समर्पण की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। आपने कहा कि ऐसे विद्वान बिरले ही होते हैं जो अपना संपूर्ण जीवन धर्म के प्रति समर्पित कर देते हैं। प्राचार्यजी इसकी बेहद ही खुबसूरत मिसाल हैं। आपने आगे कहा कि समाज में आज विद्वानों की कमी होती जा रही है। प्राचार्यजी इस हेतु समाज में गांधी की भूमिका का निर्वाह करें एवं प्राचार्य से आचार्य बनें। आपने पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का संदेश भी प्रस्तुत किया।
महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मलकुमारजी सेठी ने अपना उद्बोधन चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी, गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमतीजी एवं आर्यिका श्री सुपार्श्वमतीजी तथा मुनिसंघों की जय के साथ प्रारंभ किया। आपने प्राचार्यजी की निर्लोभी वृत्ति की चर्चा करते हुए इस बात का खुलासा किया कि प्राचार्यजी ने विगत 23 वर्षों से जैन गजट का कुशलतापूर्वक संपादन किया है किन्तु इस हेतु उन्होंने एक पैसा भी नहीं लिया है। आपने कहा कि मैं प्राचार्यजी में मुनिमुद्रा के दर्शन करना चाहता हूँ।
दिशाबोध के संपादक डॉ. चीरंजीलाल बगड़ा ने कहा कि यदि संपूर्ण मानव की पहचान करना है तो प्राचार्यजी के जीवन को आत्मसात करें। वे मानव मुकुट हैं तथा हजारों में अनोखे हैं। अभिनंदन ग्रंथ मनीषा को उपयोगी बताते हुए उसे संदर्भ ग्रंथ के रूप में पढ़े जाने की भी अपील उन्होंने की।
प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन अभिनंदन समारोह में असम, नागालैंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, दिल्ली, कर्नाटक सहित कई प्रदेशों के लोग उपस्थित थे। इस अवसर पर 700 पृष्ठीय अभिनंदन ग्रंथ 'मनीषा' की प्रारूप पुस्तिका का विमोचन कोलकाता के मेयर श्री सुब्रतो मुकर्जी ने किया। तत्पश्चात् मेयर का शॉल और श्रीफल से सम्मान भी किया गया। प्राचार्यजी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राजेश्वरी देवी को मंच पर शादी का साफा पहनाकर, गठजोड़ बाँधकर की गई संगीतमय पुष्पवर्षा बेहद आकर्षक थी।
इस अवसर पर श्री कैलाशचंद बड़जात्या, श्री महावीरजी गंगवाल, श्री महावीरजी गंगवाल, श्री त्रिलोकचंद सेठी, श्री जयकुमार जैन, श्री कपूरचंद पाटनी, श्री अनूपचंद जैन एडवोकेट ने भी अपने विचार रखे। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की ओर से सचिव डॉ. अनुपम जैन ने सम्मान किया।
प्राचार्यजी ने अपने अभिनंदन के प्रत्युत्तर में कहा कि मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि देश के कोने-कोने से इतने लोगों का प्यार मुझे मिलेगा। मुझे प्रसन्नता है कि गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी तथा गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी ने अपने दूतों (कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्रकुमार जैन एवं ब्र. डॉ. प्रमिला जैन) के माध्यम से मुझे आशीर्वाद प्रदान किया है। मैं आचार्यश्री विद्यासागरजी, आचार्यश्री वर्द्धमानसागरजी, आचार्यश्री अभिनंदनसागरजी का भी कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मुझे इस अवसर पर आशीर्वाद प्रदान किया। मैं उन सभी पूर्ववर्ती विद्वानों का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने मुझे इस लायक बनाया है। कोलकाता वालों के दिलों में मेरे प्रति जो भाव हैं उसे मैं अपने पूर्व जन्म के पुण्य का प्रताप तथा यशकीर्ति कर्म के उदय का प्रतिफल मानता हूँ। आपने स्वाध्याय की परंपरा निभाने पर जोर दिया ताकि माँ सरस्वती का सम्मान होता रहे। आपने कोलकाता वासियों से 'गौरव
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अर्हत् वचन, 15 (4), 2003
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