Book Title: Arhat Vachan 2003 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 110
________________ कुण्डलपुर महोत्सव 'जैन इतिहास वीथिका' प्रदर्शनी का भव्य आयोजन परमपूज्य गणिनीप्रमुख, आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से भगवान महावीर की परम्परामान्य एवं आगमसम्मत जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) में प्रथम बार आयोजित कुण्डलपुर महोत्सव में अर्हत् वचन सम्पादक मण्डल के सदस्य एवं ज्ञानोदय फाउन्डेशन, इन्दौर के निदेशक श्री सूरजमल बोबरा ने 'जैन इतिहास वीथिका' के नाम से एक प्रदर्शनी का संयोजन एवं प्रदर्शन किया। इसका पूर्वावलोकन 21 सितम्बर 2003 को इन्दौर में किया गया था। यह प्रदर्शनी भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में निर्माणाधीन नंद्यावर्त महल में स्थाई रूप से प्रदर्शित की जानी है। सम्प्रति इसे महोत्सव के अन्तर्गत एक भव्य प्रदर्शनी मंडप में प्रदर्शित किया गया। इसका उद्घाटन केन्द्रीय लघु उद्योग मंत्री माननीय श्री सी. पी. ठाकुर के करकमलों से सम्पन्न हआ। बिहार के राज्यपाल महामहिम श्री एम. रामा जोयिस ने प्रदर्शनी का सूक्ष्मता से अवलोकन कर इसकी भूरि - भूरि प्रशंसा की। परमपूज्य, गणिनीप्रमुख, आर्यिका श्री ज्ञानगती माताजी, प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी एवं पीठाधीश क्षुल्लकरत्न श्री मोतीसागरजी महाराज ने भी प्रदर्शनी का अवलोकन कर इसकी मुक कंठ से प्रशंसा की। पूज्य आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी ने कहा कि इस प्रकार की प्रदर्शनी से तीर्थ पर आने वाले यात्रियों को अपनी गौरवशाली संस्कृति को जानने एवं समझने का अवसर प्राप्त होगा, ज्ञानवर्द्धन के साथ ही संस्कृति संरक्षण की प्रेरणा भी मिलेगी। राजगृही, , पावापुरी, मांगीतुंगी, श्री सूरजमलजी बोबरा का सम्मान करते हुए डा. अनुपम जैन, संघपति लाला महावीरप्रसाद अयोध्या आदि क्षेत्रों जैन एवं श्री कमलचन्द जैन। पार्श्व में प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी के प्रतिनिधियों ने इस प्रकार की प्रदर्शनी अपने - अपने क्षेत्रों पर भी लगाने की भावना व्यक्त की। __ कुण्डलपुर महोत्सव के मध्य प्रदर्शनी के संयोजन में श्रीमती बोबरा, उनके परिवार के सदस्यों, प्रो. श्रेणिक बंडी, प्रो. कल्पना बंडी का भी प्रशंसनीय सहयोग रहा। इस भव्य प्रदर्शनी के संयोजन में अपनी चंचला लक्ष्मी एवं प्रतिभा का उपयोग करने हेतु श्री सूरजमलजी बोबरा का कुण्डलपुर दिगम्बर जैन समिति की ओर से भावभीना अभिनन्दन किया गया। 104 अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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