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कुण्डलपुर महोत्सव कुण्डलपुर महोत्सव के अवसर पर जम्बूद्वीप पुरस्कार 2003 प्राप्त करने के पश्चात् डॉ. चीरंजीलाल बगड़ा, कोलकाता का लिखित वक्तव्य
सम्मानित मंच एवं उपस्थित धर्मानुरागी भाइयों एवं बहिनों,
चिन्तन-मनन और प्रवचन में, यही बात दोहराई। मूक प्राणियों के ओंसू की, भाषा समझो भाई । परम अहिंसा धर्म यही है, जीओ और जीने दो । सिंह गाय को एक घाट पर पानी तो पीने दो ॥ आज चारों तरफ हिंसा की ज्वालामुखी फट रही है, धरती अधीर होकर पुकार रही है, प्रकृति का चीत्कार हमें सुनाई नहीं पड़ रहा है, राम और कृष्ण, महावीर और गांधी, भारत और अहिंसा आज विश्व में ये युगल शब्द समानार्थक प्रतीक बनकर हमसे, विशेषकर हम महावीर के अनुयायियों से, मूक पशुओं के प्राणदान की याचना करते से प्रतीत होते हैं। हम जो अपने लिए चाहते हैं, वही दूसरों के लिए भी प्रीतिकर हैं। हिंसा पर अहिंसा की विजय यात्रा के लिए आज प्रस्थान करने की मंगल बेला है और मैं आज आप सबको इसके लिए संकल्पित होने के लिए आव्हान करता हूँ ।
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आज अहिंसा पर विश्व में चर्चा तो जोर शोर से हो रही है, परन्तु दुखद है कि भारत सदृश्य इतने बड़े अहिंसक देश में भी, आज अहिंसा पर वैज्ञानिक दृष्टि से व्यावहारिक कार्यों के शोध-बोध करने के लिए एक भी संस्थान नहीं है। आपने देखा होगा अभी कुछ समय पूर्व ही दिल्ली के एक अनुसंधान संस्थान ने कोका कोला, पेप्सी आदि कोल्ड ड्रिंक्स में रासायनिक अवशेषों की मात्रा पाये जाने का मामला उठाया और किस तरह पूरे देश में हलचल मच गई। लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, न्यायालय, टीवी, प्रेस, मीडिया, सर्वत्र एक ही मुद्दा कई दिनों तक छाया रहा। यह है वैज्ञानिक शोध शक्ति - युक्त प्रस्तुत तथ्य की प्रतिक्रिया ।
आज हमारा पूरा जीवन हिंसामय बना हुआ है। हमारी प्राचीन ऋषि- कृषि भी आज हिंसायुक्त है। जमीन, जल और वायु सब प्रदूषित है। हमारी भावी संतति खतरे में है। आज पूरा विश्व मौत के मुंह की तरफ बढ़ रहा है और उसे रोकने का तथा इस प्रक्रिया से वापसी का एक मात्र समाधान है व्यावहारिक जीवन में अहिंसा के मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठापित करना, प्रकृति के शोषण को रोकना तथा प्रकृति, प्राणी और मानव जीवन के बीच संतुलित सामंजस्य स्थापित करना ।
हमारी परिकल्पना देश में एक ऐसे अहिंसा इंस्टिट्यूट को स्थापित करने की है, जिसको तीन चरणों में आगे बढ़ाया जा सकता है। प्रथम चरण के अंतर्गत बीस लाख रूपयों के बजट में किताबें, वीडियों, सी.डी. आदि से युक्त एक आधुनिक संसाधन समृद्ध लाइब्रेरी के साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की एक अहिंसा डाईजेस्ट नाम से पत्रिका प्रकाशन को प्रारंभ करना है। योग्य वैज्ञानिक, प्रोफेसर तथा मनीषी चिंतकों का एक समुदाय हमारे साथ में है। आवश्यकता मात्र उन सबके साथ संपर्क जोड़कर एक कार्य योजना तैयार करने की है और आवश्यक संसाधन जुटाने के लिए आप सबका, समाज का मुक्त हस्त से आर्थिक सहयोग जरूरी है।
अर्हत् वचन, 15 (4), 2003
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