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गतिविधियाँ
चि. अभिषेक जैन का आकस्मिक देहावसान
श्री विनोदकुमार जैन (लखनऊ) के ज्येष्ठ पुत्र चि. अभिषेक जैन का आकस्मिक निधन दिनांक 16.11.03 को हो गया। वे 30 वर्ष के थे। वे सीतापुर रोड़ स्थित अपनी फैक्ट्री से अपने निवास मोटरसाइकल से आ रहे थे कि अचानक पीछे से आ रहे किसी वाहन ने टक्कर मार दी जिससे मस्तिष्क में चोट लग जाने के कारण उसी समय उनकी मृत्यु हो गई। वह सरल स्वभावी एवं उदारवादी व्यक्ति थे। आपका विवाह कुरावली निवासी डॉ. रसिकलाल जैन की धेवती एवं डॉ. सुशील जैन की बहिन अल्पना जैन के साथ दिनांक 30 नवम्बर 2001 को हुआ था। श्रीमती अल्पना जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ की सदस्या हैं एवं अन्य अनेक संस्थाओं से जुड़ी हैं।
आपके निधन से समाज ने एक धर्मनिष्ठ युवा खो दिया । कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार की हार्दिक श्रद्धांजलि ।
श्रीमती सुन्दरदेवी डागा का देहावसान
अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ के मुखपत्र श्रमणोपासक के सम्पादक श्री चम्पालालजी डागा की धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दरदेवी डागा का दिनांक 11.09.03 को 60 वर्ष की आयु में टी. नगर, चैन्नई में निधन हो गया । अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति की निष्ठावान गुरुभक्त श्रीमती डागा को पूज्य आचार्य श्री नानेश एवं आचार्य श्री रामलालजी महाराज साहब का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। आप अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड़ गई हैं। आपकी स्मृति में परिवार ने एक निधि स्थापित की है।
श्रीमंत सेठ शिखरचन्दजी जैन अत्यन्त दयालु, विनम्र, परोपकारी एवं धार्मिक प्रवृत्ति के साथ - साथ असहाय एवं बीमार व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने वाले महान समाजसेवी एवं उदारमना व्यक्ति थे।
श्रीमंत सेठ शिखरचन्दजी जैन का देहावसान
मध्यप्रदेश के सुप्रसिद्ध समाजसेवी, उद्योगपति सर्वश्री श्रीमंत सेठ भगवानदास शोभालालजी जैन परिवार, सागर के प्रमुख सदस्य, अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद के पूर्व अध्यक्ष श्रीमंत सेठ डालचन्दजी जैन ( पूर्व सांसद) के अनुज श्रीमंत सेठ शिखरचन्दजी जैन का दिनांक 13 अगस्त 2003 को बीमारी के बाद स्वस्थ होते होते धर्मध्यान पूर्वक असामयिक एवं आकस्मिक निधन हो गया है।
उनके निधन से सम्पूर्ण श्रीमंत परिवार एवं जैन समाज की अपूरणीय क्षति हुई है। वह अपने सम्पन्न परिवार के साथ अपनी धर्मपत्नी एवं दो पुत्रियों को रोता बिलखता छोड़ गये हैं परिवार, संबंधी एवं स्नेही सभी उनके वियोग से अत्यन्त दुखी हैं। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि |
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अर्हत् वचन, 15 (4), 2003
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