Book Title: Arhat Vachan 2003 10
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 93
________________ आख्या अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) अर्हत् वचन पुरस्कार समर्पण समारोह एवं कुन्दकुन्द व्याख्यान इन्दौर, 21.09.03 - अनुपम जैन* कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा वर्ष 1988 से अनवरत रूप से प्रकाशित शोध त्रैमासिकी अर्हत् वचन में एक वर्ष के 4 अंकों में प्रकाशित होने वाले आलेखों में से 3 सर्वश्रेष्ठ आलेखों का चयन कर उन्हें अर्हत् वचन पुरस्कार से प्रति वर्ष सम्मानित किया जाता है। 1990 से प्रारम्भ किये गये इस पुरस्कार के अन्तर्गत प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त लेख के लेखकों को क्रमश: रु. 5,000/-, 3,000/- एवं 2,000/- की राशि, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति प्रदान की जाती है। लेखों का चयन विशिष्ट विद्वानों के निर्णायक मंडल द्वारा किया जाता है। वर्ष - 13 (2001) हेतु प्रो. ए. ए. अब्बासी, प्रो. गणेश कावड़िया तथा श्री सूरजमल बोबरा के त्रिसदस्यीय निर्णायक मंडल की अनुशंसा के आधार पर निम्नलिखित 3 लेखकों को पुरस्कृत करने का निर्णय लिया गया - 1. Prof. Rajmal Jain, Ahmedabad, The Solar System in Jainism and Modern Astronomy'. 2. Shri Satish Kumar Jain, Delhi, Jainism Abroad'. 3. डॉ. मुकुलराज मेहता, वाराणसी, 'जैन दर्शन में आसव तत्व का स्वरूप'। वर्ष - 14 (2002) हेतु डॉ. प्रकाशचन्द्र जैन, प्रो. श्रेणिक बंडी तथा प्रो. सी. के. तिवारी के त्रिसदस्यीय निर्णायक मंडल की अनुशंसा के आधार पर निम्न तीन लेखकों को पुरस्कृत करने का निर्णय लिया गया - 1. Dr. S.A. Bhuvanendra Kumar, Canada, "The Jaina Hagiography and the Satkhandīgama'. 2. Smt. Pragati Jain, Indore, Acārya Virasena and his Mathematical Contribution'. 3. डॉ. स्नेहरानी जैन, सागर, 'काल विषयक दृष्टिकोण'। इन दोनों वर्षों का संयुक्त पुरस्कार समर्पण समारोह राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली के उपनिदेशक डॉ. प्रमोद मेहरा के मुख्य आतिथ्य तथा श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। सभा में प्रो. जे. पी. विद्यालंकार (निदेशक - भोगीलाल लहेरचन्द प्राच्य विद्या संस्थान, नई दिल्ली), ब्र. संदीप जैन 'सरल' (अध्यक्ष - अनेकान्त ज्ञान मन्दिर, बीना), श्री हीरालाल जैन (अध्यक्ष - सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर), श्री प्रशान्त जैन (देवकुमार जैन प्राच्यविद्या शोधकेन्द्र, आरा) विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। सभा में पूर्व कुलपति प्रो. ए. ए. अब्बासी (मानद निदेशक - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर), प्रो. नलिन के. शास्त्री (कुलसचिव - गुरु गोविन्दसिंह इन्द्रप्रस्थ वि.वि., नई दिल्ली), प्रो. सुरेशचन्द्र अग्रवाल (प्राध्यापक - गणित विभाग, चौधरी चरणसिंह वि.वि., मेरठ) तथा श्री अजितकुमारसिंह कासलीवाल (कोषाध्यक्ष - ज्ञानपीठ) ने अपने विचार व्यक्त किये। निर्णायक मंडल के प्रतिनिधि के रूप में प्रो. श्रेणिक बंडी (विभागाध्यक्ष - गणित, होलकर विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर) ने निर्णय की घोषणा की। इस अवसर पर प्रो. राजमल जैन 89 अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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