Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 7
________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर जब 14 वर्षों में अर्हत् वचन में प्रकाशित सामग्री की समेकित / वर्गीकृत सूचियों के प्रकाशन का निश्चय किया था तब हम स्वयं भी यह अनुमान नहीं लगा सके थे कि यह कार्य इतना क्लिष्ट, श्रम एवं समयसाध्य होगा । हमें यह भी नहीं अनुमान था कि हमारे प्रबुद्ध पाठकों द्वारा यह इतना सराहा जायेगा। किन्तु जब कार्य प्रारंभ कर दिया तब ध्यान में आया कि वर्षानुसार सूचियों का संकलन तो सरल है किन्तु उनका विषयानुसार वर्गीकरण तथा लेखकानुसार सूची तैयार करना श्रम साध्य कार्य है। लेखों से इतर सामग्री को लेखकानुसार सूचियों में समाहित करने की हमारी भावना ने श्रम को बढ़ाया। फलत: हमें 15 (1-2) संयुक्तांक रूप में प्रकाशित करना पड़ा। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की गतिविधियों / उपलब्धियों की पाठकों को संक्षिप्त जानकारी देने के भाव से 20 पृष्ठीय आख्या भी जोड़ दी। हमें यह देखकर आत्मिक संतोष है कि हमारे सुधी पाठकों ने इस 120 पृष्ठीय विशेषांक की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए इसे अत्यन्त उपयोगी पाया है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक हमें एक भी प्रतिकूल टिप्पणी प्राप्त नहीं हुई हैं। पाठकों के स्नेह एवं उत्साहवर्द्धन हेतु हम आभारी हैं। विद्यावयोवृद्ध विद्वान पं. नाथूराम जी डोंगरीय ने सुझाव दिया है कि अर्हत् वचन में जैन विज्ञान, इतिहास एवं पुरातत्व के अतिरिक्त अन्य जन रूचि के विषयों पर भी लेख प्रकाशित किये जायें तो इसका अधिक प्रचार- प्रसार होगा। इस सन्दर्भ में हमारा निवेदन है कि जैन समाज द्वारा प्रकाशित की जाने वाली लगभग 350 पत्र पत्रिकाओं में अर्हत् वचन की एक अलग पहचान इसकी खास विषयवस्तु के कारण ही है। यह सम्पादकीय रीति-नीति अर्हत् वचन के गत सम्पादक मंडलों, निदेशक मंडलों द्वारा अनुमोदित है। वर्तमान सम्पादकीय परामर्श मंडल के सम्मुख भी यह विषय एक बार पुन: प्रस्तुत किया जाकर पुनर्विचार किया जा रःकता है। विगत 14 वर्षों में भी हमने विज्ञान, इतिहास एवं पुरातत्व को वरीयता अवश्य दी हैं किन्तु अन्य विषयों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण कभी नहीं रहा। गत संयुक्तांक में प्रकाशित सूचियाँ भी यही इंगित करती हैं। 1 जनवरी 03 के बाद निम्नांकित महानुभावों ने सहयोगी सदस्यता स्वीकार कर हमारा उत्साहवर्द्ध किया है हम आपका अर्हत् वचन पाठक परिवार में स्वागत करते हैं. - सम्पादकीय सामयिक सन्दर्भ 1. श्री सिद्धकूट चैत्यालय टेम्पल ट्रस्ट, अजमेर 2. श्री विवेक काला, जयपुर 3. श्री आदित्य जैन, लखनऊ हमारी उत्सव प्रेमी जैन समाज की अकादमिक, शैक्षणिक विषयों में अरुचि के दुष्परिणाम निरन्तर सम्मुख आ रहे हैं। सारे विश्व में जब संस्कृति संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है संगठनात्मक प्रवृत्ति को विकसित कर हर वर्ग अपने सकारात्मक पक्ष को प्रचारित कर रहा है। हमारा जैन समाज विशेषतः दिगम्बर जैन समाज इस विषय में उदासीनता को और बढ़ा रहा है। परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की सतत् प्रेरणा से 1999 में मैंने अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only 5 www.jainelibrary.org

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