Book Title: Arhat Vachan 2003 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 16
________________ A 4.18 जैन, नीलम : पर्यावरण प्रदूषण मांसाहार से भी होता है, 4(2-3), 79-80 A 4.19 सालगिया, सुशीला : मूक माटी की सामाजिक चेतना, 4(2-3), 81-88 A 4.20 Gupta, R.C. : Jaina Cosmography and Perfect Numbers, 4(2-3), 89-94 A 4.21 Jain, Laxmi Chandra : The Jaina Schools of Mathematical Sciences (The Digambara and the Svetambara Schools), 4 (2-3), 95-101 A 4.22 Nagarch, B.L. : Newly Discovered Jaina Cave and Sculptures at Bihar-Kotara, Dist. Rajgarh (M.P.), 4(2-3), 103-106 A 4.23 Shastri, T.V.G. : Mulasamgha - The Earliest Jaina Organisation, 4(2-3), 107-110 A 4.24 Jain, A. P. : Raga and their Time, 4 (2-3), 111-114 A 4.25 Ganesan, T.: Origin and Development of Jaina Architecture in Tamilnadu, 4(4), 1-5 A 4.26 Hanumantha Rao, B.S.L. : The Jaina Relics of Kolānupaka, 4(4), 7-11 A 4.27 जैन, लक्ष्मीचन्द्र एवं सतीश्वरी प्रभा : क्या सम्राट चन्द्रगुप्त दक्षिण भारत में मुनि रूप में ब्राह्मी लिपि के आविष्कार में सहयोगी हुए ? भाग-2, 4(4), 13-22 A 4.28 जैन, कुन्दनलाल : देवगढ का शिलालेख, 4 (4), 23-30 + 2 पृ. आर्ट पेपर A 4.29 जैन, अभयप्रकाश : प्रकाशधारा और आभामंडल, 4 (4), 31-34 A 4.30 जैन, रामजीत (एडवोकेट) : स्वस्तिक - प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति, 4 (4), 35-38 A 4.31 जैन, महेन्द्रकुमार ‘मनुज' : मगध की जैन कला में अम्बिका निरूपण, 4 (4), 39-42 A 4.32 नागार्च, बिहारीलाल : मध्यप्रदेश की जैन मूर्ति कला तथा बिडला संग्रहालय भोपाल की विशिष्ट जैन प्रतिमाएँ, 4 (4), 43-48 A 4.33 उपाध्याय, शचीन्द्र प्रसाद एवं उपाध्याय, ऋचा : शाजापुर में प्राप्त जैन प्रतिमाओं का अध्ययन, 4 (4), 49-53 A 5.1 जैन, राजाराम : गोपाचल : उत्तरमध्यकालीन इतिहास, साहित्य एवं कला का संगम तीर्थ, 5 (1), 9.17 A 5.2 आर्य, सुरेन्द्र कुमार : गोपाचल दुर्ग का जैन पुरावशेष, 5 (1), 19-27 A5.3 जैन, रामजीत (एडवोकेट) : गौरवता का गौरव - गोपाचल, 5 (1), 29-37 A 5.4 आर्य, मायारानी : ग्वालियर संग्रहालय की जैन प्रतिमाएँ, 5 (1), 39-40 A5.5 जैन, अभयप्रकाश : तीर्थकर पार्श्व और नागवंश, 5 (1), 41-43 A 5.6 जैन, मीरा : ग्वालियर के दिगम्बर जैन मन्दिर की चित्रकला, 5 (1), 45-46 + 1 पृ. आर्ट पेपर A 5.7 माहेश्वरी, एच. बी. 'जैसल' : जैन धर्म संस्कृति का एक सिद्धक्षेत्र - नरवर, 5 (1), 47-50 A 5.8 जैन, कंवर : गोपाचल का त्रिशलागिरि समूह, 5 (1), 51-52 + 2 पृ.आर्ट पेपर A 5.9 Kaushik, J.P. & Sikarwar, Ram Lakhan Singh & Shukla, R.M. : Flora of Gwalior Fort, 5 (1), E7-24 14 अर्हत् वचन, 15 (1-2), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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