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N9.2 N9.3
जैन, हेमन्तकुमार : जम्बूद्वीप और पृथ्वी की स्थिरता, 9 (1), 57-58 गोयल, निर्मलकुमार : हमार देश का नाम भारत अथवा इण्डिया, 9(2), 75-76
N9.4
अग्रवाल, पारसमल : अध्यात्म एवं विज्ञान से संबन्धित कुछ शोध बिन्दु, 9 (2), 77-79
N9.5
जैन, स्नेहरानी : गणितीय छन्द ग्रन्थ - षट्खंडागम, 9(2), 81-82
N9.6
जैन, अभयप्रकाश : अनहद बाजे नोम तोम, 9(2), 83-35
N9.7
जैन, हृदयराज : भगवान ऋषभदेव का लांछन बैल नहीं वृषभ, 9(2), 87-89
N9.8
जैन, हेमन्तकुमार : सिरि भूवलय की प्राप्ति - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की एक उपलब्धि, ५(3), 69-72
N9.9
खरे, लखनलाल : वर्षों से पत्थरों की मार झेलती एक जैन प्रतिमा, 9(3), 73-74
N9.10 माहेश्वरी, एच.बी. 'जैसल' : चंबल अंचल का प्राचीन अतिशय क्षेत्र - सिंहोनिया, 9(3), 75
N9.11 पाटनी, मन्मथ : भक्ष्य - अभक्ष्य, 9(3), 77-78 N9.12 जैन, निर्मलकुमार (सेठी) : धर्मायतनों की रक्षा जरूरी, 9 (3), 79-80 N9.13 पाटनी, मन्मथ : बिदल क्या है?, 9 (4), 54 N9.14 पाठक, नरेशकुमार : केन्द्रीय संग्रहालय इन्दौर में सुरक्षित परमार कालीन जैन श्रुत देवी की कांस्य प्रतिमा,
9 (4), 55-56 N 10.1 जैन, अनिलकुमार : इस ओर भी ध्यान दें, 10 (1), 57-58 N 10.2 अग्रवाल, भंवरलाल : द्विदल (बिदल) का आगमानुसार कथन (पाक्षिक श्रावकाचार), 10 (1), 59-60 N10.3 पाठक, नरेशकुमार : खेराई एत्तं झाबुआ की जैन प्रतिमाएँ, 10 (1), 61-62 N10.4 जैन, निहालचन्द : महामंत्र णमोकार - एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि, 10 (1), 63-65 N10.5 अग्रवाल, भंवरलाल : वर्तमान में हमारी आवश्यकता, 10 (1), 66 N10.6 अग्रवाल, अशोक : भारतीय विद्याओं के अध्ययन का विशिष्ट केन्द्र - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 10 (1), 67-69
N10.7 बहुगुणा, सुन्दरलाल : शाकाहार के लिये वृक्ष खेती, 10 (1), 70 N 10.8 जोशी, राजकुमार : ऋषभ निर्वाण भूमि - अष्टापद कैलाश, 10 (1), 71-74 N10.9 शर्मा, जयचन्द्र : णमोकार महामत्र में लय शक्ति, 10 (2), 65-66 N10.10 पाठक, नरेशकुमार : खौर का प्राचीन जैन मन्दिर, 10 (2), 67-68 N10.11 जैन, अभयप्रकाश : पभोषागिरि की शैलकला सम्पूर्ण मानवता की विरासत, 10 (2), 69-70
N10.12 माहेश्वरी, एच.बी. जैसल' : जैन दर्शन के मर्मज्ञ डॉ. जगदीशचन्द्र जैन के सम्मान में डाक टिकट, 10 (2), 71-72
N10.13 जैन, सुरेश : अध्यात्म का वैज्ञानिकीकरण एवं विज्ञान का आध्यात्मीकरण, 10 (2), 73-74 N10.14 खरे, लखनलाल : कब तक अपमानित होंगी जैन प्रतिमाएँ, 10 (3), 69-70 30
अर्हत् वचन, 15 (1-2), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only
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