Book Title: Arhat Vachan 2003 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 43
________________ अर्हत् वचन वर्ष - 1(1988 - 89) से वर्ष 14 (2002) में प्रकाशित सारांशों की वर्षानुसार सूची (18) S 1.1 अग्रवाल, मुकुट बिहारीलाल : गणित एवं ज्योतिष के विकास में जैनाचार्यों का योगदान (शोध प्रबन्ध का सारांश), 1 (2), 71-76 S1.2 जैन, अनुपम : गणित के विकास में जैनाचार्यों का योगदान (एम.फिल. योजना विवरण का सारांश),1 (2),77-78 S1.3 Lishk, Sajjan Singh : Mathematical Analysis of Post-Vedānga Data in Jaina Astronomy, (Summary of Thesis), 1 (3), 76-78 S1.4 जैन, अनुपम : गणित के विकास में जैनाचार्यों का योगदान (शोध प्रबन्ध का सारांश), 163),79-82 52.1 जैन, कपूरचन्द : जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त : एक अध्ययन (मनोरमा जैन के शोध प्रबन्ध का सारांश), 2 (3), 73-75 S4.1 जैन, कैलाशचन्द्र : म.प्र. में जैन पुरातत्व और उनका ऐतिहासिक महत्व, 4 (2-3), 115-116 S4.2 जैन, गोकुलचन्द्र : विरासत में प्राप्त अध्यात्म ज्ञान के सूत्र नई पीढी को सौंपे, 4 (2-3), 117 S4.3 निगम, श्यामसुन्दर : मेरी समन्वेषणा एवं जैन पुरातत्व, 4 (2-3), 117-118 S4.4 जैन, प्रभा : जैन तर्कशास्त्र में हेतु का स्वरूप, ऐतिहासिक एवं समीक्षात्मक अध्ययन की एक झलक, 4 (2-3), 119-120 54.5 अग्रवाल, पारसमल : आधुनिक विज्ञान, जैन दर्शन एवं हम, 4 (2-3), 121 S4.6 त्रिपाठी, रूद्रदेव : जैन साहित्य में विद्यमान वैज्ञानिक सामग्री के सन्दर्भ में भूगोल एवं खगोल संबंधी विचारणाएँ, 4 (2-3), 122 54.7 आर्य, सुरेन्द्रकुमार : जैन हरिवंशपुराण में वर्णित आभूषण एवं अस्त्र-शस्त्रों का समकालीन मूर्ति शिल्प में प्रकल्पन, 4 (2-3), 123-124 84.8 जैन, अशोक : जैन धर्म के कुछ वैज्ञानिक तथ्य - पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में, 4 (2-3), 125 s5.1 जैन,कैलाशचन्द्र : मध्यप्रदेश के जैन तीर्थ, 5 (4), 271-272 s5.2 निगम, श्यामसुन्दर : मालव अंचल में जैन पुरातत्व (समस्या एवं समाधान, 5 (4), 273 55.3 आर्य, सुरेन्द्रकुमार : जैन धर्म के निवृत्ति मार्ग में सहायक तीर्थंकरों की आसन प्रणाली का मूर्ति शिल्प में प्रकल्पन, 5 (4), 274 55.4 खण्डेलवाल, जयकिशन प्रसाद : श्रमण संस्कृति का आधार, 5 (4), 275-276 S14.1 छाजेड़ (श्रीमती) अनुपमा : जैन रामायणों में राम का स्वरूप (शोध प्रबन्ध का सारांश), 14 (4), 105-106 अर्हत् वचन, 15 (1-2), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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