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अर्हत् वचन पुरस्कार वर्ष 14 (2002) की घोषणा
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा मौलिक एवं शोधपूर्ण आलेखों के सृजन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वर्ष 1990 में अर्हत् वचन पुरस्कारों की स्थापना की गई। इसके अन्तर्गत प्रतिवर्ष अर्हत् वचन में एक वर्ष में प्रकाशित आलेखों के मूल्यांकन हेतु एक निर्णायक मंडल का गठन किया गया।
निर्णायकों द्वारा प्रदत्त प्राप्तांकों के आधार पर वर्ष 2002 हेतु निम्नांकित आलेखों को क्रमश: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार हेतु चुना गया है। ज्ञातव्य है कि पूज्य मुनिराजों/आर्यिका माताओं, अर्हत् वचन सम्पादक मंडल के सदस्यों एवं विगत पाँच वर्ष में इस पुरस्कार से सम्मानित लेखकों द्वारा लिखित लेख प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं किये जाते हैं। पुरस्कृत लेख के लेखकों को क्रमश: रुपये 5001/-. 3001/-, 2001 की नगद राशि, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह से निकट भविष्य में सम्मानित किया जायेगा। प्रथम पुरस्कार : The Jaina Hagiography and the Satkhandagama, 14(4),
October-December 2002, 49-60, Dr. S. A. Bhuvanendra Kumar, Editor-Jinamanjari, 4665, Moccasin Trail, Mississau
ga, Canada L4Z, 2W5. द्वितीय पुरस्कार : Acarya Virasena and his Mathematical Contribution, 14(2-3),
April- September 2002, 79-90, Mrs. Pragati Jain, Lecturer
ILVA Science & Commerce College, Indore. तृतीय पुरस्कार : काल विषयक दृष्टिकोण, 14 (2 -3), अप्रैल-सितम्बर 2002,
41-50, डॉ. (ब्र.) स्नेहरानी जैन, c/o. श्री राजकुमार मलैया,
भगवानगंज, स्टेशन रोड, सागर। देवकुमारसिंह कासलीवाल
डॉ. अनुपम जैन अध्यक्ष
मानद् सचिव 14.06.2003
JINAMANJARI
जैन विद्या का पठनीय षट्मासिक
JINAMANJARI Editor-S.A. Bhuvanendra Kumar Periodicity - Bi-annual (April & October) Publisher - Brahmi Society, Canada-U.S.A. Contact - Dr. S. A. Bhuvanendra Kumar
4665, Moccasin Trail, MISSISSAUGA, ONTARIO,
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JAINA HISTORIC ASPECTS
OF INDIA
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अर्हत् वचन, 15 (1-2), 2003
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