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संगोष्ठी अवधि
आख्या जैन विद्या संगोष्ठी - 92 12 - 13 जनवरी, 1992 अर्हत् वचन, 4(2-3), अप्रैल-जुलाई 92 जैन विद्या संगोष्ठी - 93 4-6 जून, 1993 अर्हत् वचन, 5 (4), अक्टूबर 93 अ. भा. प्राकृत संगोष्ठी - 94 2 2-24 अक्टूबर, 1994 अर्हत् वचन, 7(1), जनवरी 95 जैन विद्या संगोष्ठी - 95 21-22 फरवरी, 1995 अर्हत् वचन, 7(2), अप्रैल 95 जैन विद्या संगोष्ठी-96 12-13 मार्च, 1996 अर्हत् वचन, 8 (2), अप्रैल 96 जैन विद्या संगोष्ठी-97 28-29 जून, 1997 अर्हत् वचन, 9(3), जुलाई 97 भगवान ऋषभदेव संगोष्ठी - 2000 28-29 मार्च, 2000 अर्हत् वचन, 12 (2), अप्रैल 2000 जैन विद्या संगोष्ठी - 2001 3-5 मार्च, 2001 अर्हत् वचन, 13 (2), अप्रैल - जून 2001
ज्ञानपीठ में समय समय पर परमपूज्य संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी, आचार्य श्री अभिनन्दनसागरजी, आचार्य श्री पुष्पदंतसागरजी, आचार्य श्री देवनन्दिजी, उपाध्याय श्री गुप्तिसागरजी, उपाध्याय श्री निजानन्दसागरजी, मुनि श्री नियमसागरजी, मुनि श्री योगसागरजी, मुनि श्री क्षमासागरजी, मुनि श्री तरूणसागरजी, गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी, आर्यिका श्री चन्दनामतीजी, आर्यिका श्री प्रज्ञामतीजी, आर्यिका श्री दृढ़मतीजी, आर्यिका श्री पूर्णमतीजी, आर्यिका श्री आदर्शमतीजी, स्थानकवासी जैन संत श्री विनयमुनिजी, समणी मंगलप्रज्ञाजी, प्रो. योशिमाशा मिचीवाकी (जापान), मुत्सुको मिचीवाकी (जापान), टिट्जे दम्पति (आस्ट्रिया), प्रो. एस. डी. बाजपेयी (बहरीन), प्रो. विनोद डुकराल (यू.एस.ए.), प्रो. जयेन्द्र सोनी (जर्मनी), डॉ. महेन्द्र पांड्या (अमेरिका), डॉ. दिलीप बोबरा, डॉ. प्रेमचन्द गाडा (अमेरिका), केन्द्रीय राज्यमंत्री श्रीमती सुमित्रा महाजन तथा अनेक विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रख्यात भाषाविद् एवं वैज्ञानिक पधार चुके हैं। अर्हत् वचन पुरस्कार योजना
श्रेष्ठ आलेखों के लेखकों को सम्मानित करने के उद्देश्य से अर्हत् वचन पुरस्कार योजना 1989 में घोषित की गई। इसका विस्तृत विवरण पृष्ठ 95 - 98 पर दृष्टव्य है। ज्ञानोदय पुरस्कार
. श्रीमती शांतादेवी रतनलालजी बोबरा की स्मृति में श्री सूरजमलजी बोबरा, इन्दौर द्वारा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के माध्यम से ज्ञानोदय पुरस्कार की स्थापना 1998 से की गई है। यह सर्वविदित तथ्य है कि दर्शन एवं साहित्य की अपेक्षा इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में मौलिक शोध की मात्रा अल्प रहती है। फलत: यह पुरस्कार जैन इतिहास के क्षेत्र में मौलिक शोध को समर्पित किया गया है। इसके अन्तर्गत प्रतिवर्ष जैन इतिहास के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र/पुस्तक प्रस्तुत करने वाले विद्वान को रु. 11,001 = 00की नगद राशि, प्रशस्ति पत्र, शाल एवं श्रीफल से सम्मानित किया जाता रहा है।
इसके अन्तर्गत अब तक निम्न विद्वानों को परस्कत किया जा चका है - वर्ष 1998 : डॉ. शैलेन्द्र रस्तोगी, फैजाबाद पूर्व निदेशक - रामकथा संग्रहालय, फैजाबाद) को उनकी
कृति 'जैन धर्म कला प्राण ऋषभदेव और उनके अभिलेखीय साक्ष्य' पर। वर्ष 1999 : प्रो. हम्पा नागराजैय्या, बैंगलोर को उनकी कृति 'A History of the Rastrakutas
of Malkhed and Jainism' पर। वर्ष 2000 : डॉ. अभयप्रकाश जैन (ग्वालियर) को उनकी कृति 'जैन स्तूप परम्परा' पर। वर्ष 2001 : श्री सदानन्द अग्रवाल (मेण्डा - उडीसा) को उनकी कृति 'खारवेल' पर।
वर्ष 2002 से चयन की प्रक्रिया में परिवर्तन किया गया है। अब चयनित कृति के प्रस्तावक को भी रु. 1,000 = 00 की राशि से सम्मानित किया जायेगा। 114
अर्हत् वचन 15 (1-2), 2003
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