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से 94 तक प्रकाशित किया जा रहा है। अनेक विशेषांक भी प्रकाशित हो चुके हैं। अब तक प्रकाशित अंकों का सामूहिक चित्र मुखपृष्ठ पर दृष्टव्य है।
सम्प्रति इस पत्रिका का संपादन कार्य शासकीय होलकर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर के गणित विभाग में पदस्थ डॉ. अनुपम जैन द्वारा किया जा रहा है। पत्रिका के 1988 से 2002 तक के सम्पादक मंडल के सदस्यों के नाम पृ. 3 - 4 पर एवं वर्तमान परामर्श मंडल के नाम पृष्ठ-2 पर अंकित हैं। पुरातत्व
1987 में स्थापित कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ द्वारा अपने स्थापना के तत्काल बाद से ही पुरातात्विक सामग्री के सर्वेक्षण, अभिलेखीकरण एवं प्रकाशन को पर्याप्त महत्व दिया जाता रहा है। फलत: हमने इस कार्य को स्वतंत्र विभाग के रूप में संचालित करने का निर्णय किया। परीक्षा बोर्ड के समान ही पुरातत्व विभाग भी प्रारम्भ से ही संचालित है। देश के प्रख्यात पुराविद् डॉ. टी. व्ही. जी. शास्त्री, पूर्व निदेशक-बिरला पुरातत्व एवं संस्कृति अनुसंधान केन्द्र, हैदराबाद के निर्देशन में दक्षिण के अनेक अज्ञात पुरातात्विक महत्व के स्थलों का सर्वेक्षण कराकर अर्हत् वचन में सामग्री का प्रकाशन किया गया। वर्तमान में भी विभिन्न पुरातत्वज्ञों के सहयोग से महत्वपूर्ण स्थलों का सर्वेक्षण कराकर उनकी रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। 1989 से 1997 के मध्य गोपाचल पर एक विस्तृत परियोजना का क्रियान्वयन किया गया।
प्रारम्भ में हमने श्री पी. किशोर (शोध छात्र - विक्रम वि.वि., उज्जैन) की सेवायें शोध सहायक के रूप में प्राप्त की। वे विक्रम विश्वविद्यालय से पुरातत्व में एम.फिल. कर रहे थे। उन्होंने 1990 में 3 माह तक प्राथमिक सर्वेक्षण कर कार्य की दिशा निर्धारित की। तदुपरान्त श्री कँदर जैन की नियुक्ति कर उनसे गोपाचल एवं उसके समीपवर्ती क्षेत्र, जो गोगाचल से सीधे सम्बद्ध हैं, का 3 वर्ष में सम्पूर्ण छायांकन कराया। हमारे प्रतिनिधि द्वारा भोपाबल की समस्त गुफाओं में उपलब्ध मूर्तियों, शिल्प खंडों का चित्रांकन भी किया गया है। उनके द्वारा अब तक 850 चित्र (फोटो) लिये गये हैं जिनमें सम्पूर्ण इतिहास सुरक्षित करने का प्रयास किया गया है। संकलित सामग्री एवं चित्रों का विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन किया गया तथा अर्हत् वचन के गोपाचल विशेषांक (वर्ष - 5, अंक - 1,जनवरी-93) का प्रकाशन किया, जिससे इस क्षेत्र में विद्वानों की रूचि को जाग्रत कर अध्ययन हेतु प्रेरित किया जा सका। विशेषांक से जिज्ञासुओं को प्रारम्भिक सामग्री
भी प्रदान की जा सकी। इस विषय पर 5-6 सितम्बर 1994 को एक कार्यशाला का आयोजन भी किया गया था। इसकी अनुशंसा के अनुरूप सामग्री का संशोधन/संकलन किया गया एवं 1997 में एक प्रतिष्ठापूर्ण मोनोग्राफ The Jaina Sanctuaries of Fortress of Gwalior का प्रकाशन किया गया। अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित इस मोनोग्राफ के प्रकाशन में हमें रमादेवी बिहारीलाल जैन चेरिटेबल ट्रस्ट, ब्लूफील्ड-अमेरिका का रु. 1,00,00C = 00 का श्लाघनीय सहयोग प्राप्त हुआ। इस कार्य में डॉ. स्नेहरानी जैन (सागर) द्वारा प्रदत्त सहयोग हेतु संस्था आभारी है!
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500 PRIK
ALNA
अर्हत् वचन, 15 (1-2), 2003
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