Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 9
________________ अपना - अपना विकास करने लगे तो भी बहुत बड़ा काम होगा क्योंकि समाज के किसी भी घटक का विकास समाज का ही विकास है। किसी भी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति सदैव छोटे - छोटे खण्डों में ही होती है। समाज में मूल आगम ग्रंथों के अध्ययन/अध्यापन, प्रकाशन की रूचि घटती जा रही है। नतीजा यह है कि मूल ग्रन्थों के अध्येता विद्वानों का लोप होता जा रहा है। समाज में रचनात्मक कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं का भी अभाव बढ़ रहा है। नेतृत्व करने की प्यास तो बढ़ रही है किन्तु कार्य करने की निष्ठा का लोप हो रहा है। समाज के व्यापक हित के कामों में से एक - एक कार्य को एक- एक सगठन अथवा समर्पित समाजसेवियों की टीम को हाथ में लेना चाहिये तभी उन्हें किसी दूसरे को कोई भी राय देने का अधिकार बनता है। प्राथमिकता के कुछ बड़े कामों की चर्चा मैंने इसी स्तम्भ में विगत वर्षों में की है। यह विषय बहुत लंबा है लेकिन मुझे इस आशा और विश्वास के साथ लेखनी को विराम देना पड़ रहा है कि "अर्हत् वचन" के सुधी पाठक रचनात्मक चिंतन को गति देते हुये अपनी शक्ति, रूचि के अनुसार कार्य करेंगे तथा सकारात्मक सोच को विकसित करते हुए अपने - अपने क्षेत्र में नेतृत्व करेंगे। आज जैन समाज ने पत्रकारिता को प्रोत्साहन देने हेतु अनेक पुरस्कारों की स्थापना कर रखी है। इनके माध्यम से, पत्रकारिता के माध्यम से समाज विकास में योगदान देने वाले पत्रकारों को पुरस्कृत किया जाता है। पत्रकारिता पुरस्कारों के आयोजकों/निर्णायकों से भी हमारा अनुरोध है कि वे उक्त पक्ष को भी सम्यक् वरीयता प्रदान करें। परिवर्तन के इस दौर में अधिकांश शोध पत्रिकाएँ अपना दम तोड़ रही हैं। कागज, प्रिंटिंग की बढ़ती दरें, बढ़ते कार्यालयीन एवं डाक व्यय तथा घटती ग्राहक संख्या से शोध पत्रिकाओं का संचालन संस्थाओं के लिये हाथी पालने के समान है। ऐसे समय में भी दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट के आर्थिक अनुदान से संचालित कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा अर्हत् वचन शोध त्रैमासिकी का गत 12 वर्षों से नियमित प्रकाशन माननीय ट्रस्टियों की प्रशस्त अभिरुचि एवं प्रतिबद्धता को ही प्रतिबिम्बित करता है। इस अवसर पर श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल (काकासाहब) की पत्रकारिता एवं जैन साहित्य के वैज्ञानिक पक्ष के उद्घाटन के क्षेत्र में रुचि का सादर उल्लेख आवश्यक है। _ अर्हत् वचन के प्रस्तुत अंक के लेखन, संपादन, प्रकाशन एवं वितरण में -सहयोगी सभी बंधुओं का मैं हृदय से आभार ज्ञापित करता हूँ एवं आशा करता हूँ कि उनका यह सहयोग एवं मार्गदर्शन भविष्य में भी हमें प्राप्त होता रहेगा। डा. अनुपम जैन अगले अंकों में प्रकाश्य आलेख The Early Kadamabas and Jainism in Karnataka A. Sundara Jainism Abroad Satish Kumar Jain Rightful Exposition of Jainism in West N.L. Jain जैन आयुर्वेद शकुन्तला जैन आधुनिक विज्ञान, 'वर्गणायें' तथा 'निगोद' स्नेहरानी जैन Jaina Paintings in Tamilnadu T. Ganesan अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

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