Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 22
________________ विद्यमान रहने वाले "विरहमाण बीस तीर्थंकर' के नाम मंत्र भी रचे हैं और हिन्दी में उनकी स्तुति है। ये उपर्युक्त स्तोत्र और मंत्र पुण्य वृद्धि हेतु वास्तव में पठनीय हैं। "कल्याणकल्पतरूस्तोत्रम्" एक पठनीय छन्दशास्त्र है - मैंने ऊपर जिस कल्याणकल्पतरूस्तोत्र का नामोल्लेख किया है उसकी अपनी कुछ विशेष महिमा है जिससे पाठकों को परिचित कराना आवश्यक है। संस्कृत छन्द शास्त्रों में एक अक्षरी छन्द से लेकर तीस अक्षरों तक छन्दों का वर्णन आता है। पूज्य माताजी हम सभी शिष्य-शिष्याओं को व्याकरण के साथ-साथ छन्द ज्ञान कराने के लिए "वृत्तरत्नाकर" छन्दशास्त्र पढ़ाती थीं। पुन: उसी के आधार से सन् 1975 में उन्होंने इन सभी छन्दों का प्रयोग भगवान की स्तुति में करने हेतु एक "कल्याणकल्पतरू स्तोत्र'' की मौलिक रचना कर दी। इस स्तोत्र में भगवान ऋषभदेव से लेकर महावीर स्वामी तक चौबीसों तीर्थंकरों की पृथक - पृथक स्तुतियाँ हैं तथा इनमें क्रम से एकाक्षरी से लेकर तीस अक्षरी छन्द तक कुल एक सौ चवालीस (144) छन्दों का प्रयोग करते हुए भगवन्तों की पंचकल्याणक तिथियाँ, उनके शरीर के वर्ण, आयु, कल्याणक स्थल आदि का पूरा इतिहास निहित कर दिया है। प्रत्येक स्तुति में पांच से दस-बीस तक भी श्लोकों की संख्या है और अन्त में एक 'चतुर्विशंतितीर्थकर स्तोत्र'' नाम से समुच्चय स्तोत्र है। इस प्रकार कुल मिलाकर पूरे कल्याणकल्पतरू स्तोत्र में दौ सौ बारह (212) श्लोक हैं तथा इसमें वर्णिक, मात्रिक, सम, विषम और दण्डक इन पाँच प्रकार के छन्दों का प्रयोग है। "जिनस्तोत्रसंग्रह" 37 पुस्तक में तो यह परा स्तोत्र मात्र छन्द के नामों सहित प्रकाशित है और "कल्याणकल्पतरू स्तोत्र'"38 के नाम से एक अलग पुस्तक भी जम्बूद्वीप से सन् 1992 में छपी है जिसमें सभी स्तुतियाँ पृष्ठ के बाई ओर हैं और दाहिनी ओर स्तुतियों के अन्वयार्थ तथा अर्थ हिन्दी में प्रकाशित हैं एवं स्तुतियों के नीचे आधे - आधे पृष्ठों में उन - उन, स्तुतियों में प्रयुक्त सभी छन्दों के लक्षण दिये गये हैं। स्तुतियों के पश्चात् भी इस पुस्तक में "छन्दविज्ञान' नामक प्रकरण के अन्दर छन्दों के विशेष लक्षण, उनकी उपयोगिता तथा अर्धसमवर्णछन्द, विषमवर्ण छन्द, मात्रा छन्द आदि के भेद और लक्षणों का वर्णन होने से यह पुस्तक एक साकार उदाहरण सहित एक "छन्दशास्त्र" ग्रन्थ बन गया है जो छन्द ज्ञानपिपासुओं के लिए अत्यंत' पठनीय एवं दर्शनीय है। इस पुस्तक के अन्त में संस्कृत का एक "एकाक्षरी कोश" भी प्रकाशित स्तोत्र के किंचित प्रकरण यहाँ उद्धृत करती हूँ जिससे पाठकों को उसके विषय का आंशिक ज्ञान प्राप्त हो सकेगा। यथा - एकाक्षरी, द्विअक्षरी, त्रिअक्षरी और चतुरक्षरी छन्दों में निबद्ध ऋषभजिनस्तुति के कुछ पद्य देखें - श्री छन्द (एकाक्षरी) - ॐ, मां। सोऽव्यात्॥1॥ स्त्रीछन्द (दो अक्षरी) - जैनी, वाणी। सिद्धिं, दद्यात्।।2।। केसाछन्द (तीन अक्षरी) - गणीन्द्र। त्वदंधिं। नमामि, त्रिकालं॥3॥ नारी छन्द (तीन अक्षरी) - श्री देवो, नाभेयः। वन्देऽहं, तं मूर्ना॥4॥ कन्या छन्द (चार अक्षरी) - पू: साकेता, पूता जाता। त्वत्सूते:सा, सेन्द्रमान्या।। 5 ।। व्रीड़ा छन्द (चार अक्षरी) - महासत्यां, मरूदेव्यां। सुतोभूस्त्वं, जगत्पूज्य: ।। 6 ॥39 उपर्युक्त छन्दों के माध्यम से भगवान की दिव्यध्वनि का प्रतीक 'ॐ' बीजाक्षर जो परम ब्रह्म परमेष्ठी का वाचक सर्वसम्प्रदाय मान्य मंत्र है। उसे प्राणियों का रक्षक बतलाकर जैन वाणी - जिनेन्द्र भगवान की वाणी को सर्वसिद्धिप्रदायक कहा है तथा ऋषभदेव की अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

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