Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 99
________________ कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के कार्यालय, पुस्तकालय और सूचना केन्द्र में आकर जैन साहित्य और पत्र - पत्रिकाओं का अवलोकन करने का सुयोग मिला। पुस्तकालय तकनीक और आद्यतन वैज्ञानिक विधि से संचालित इस संस्थान का स्वरूप अनुकरणीय और शोध साहित्य के अध्येताओं तथा पाठकों के लिये अद्वितीय केन्द्र है। मेरा प्रयास होगा कि मैं यहाँ अनेक बार आऊँ और इस संस्था से बहुविधि अपने को जोडूं। 25.11.99 - डॉ. धरमचन्द जैन 761, अग्रवाल कालोनी, जबलपुर - 462 002 झाड़ोल में आचार्य श्री कनकनंदीजी की प्रेरणा से आयोजित तृतीय राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी में भाग लेने के बाद अपने मित्र संजीव सराफ के आग्रह पर जब कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ देखने का मौका प्राप्त हुआ तब ऐसा लगा कि डॉ. अनुपम जैन के अनुपमी प्रयास जैन धर्म की वैज्ञानिकता को प्रतिपादित करेंगे। 27.11.99 . डॉ. मुकेश जैन प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.) आज प्रथम बार कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में जैन धर्म के इतिहास के बारे में जानने के उद्देश्य से आया। डॉ. अनुपम जैन के सहयोग से उद्देश्य की पूर्ति हुई, इसके लिये उन्हें बहुत - बहुत धन्यवाद। 8.12.99 - संतोष कुमार जैन 202, मेक्सटेल एपार्टमेन्ट, 15/3, ओल्ड पलासिया, इन्दौर पुस्तकालय देखा। अब Computer की सहायता से शोध विद्यार्थियों को पुस्तकें मिलने, विषय को जानने में बहुत सुविधा हो गई। डॉ. अनुपमजी ने पुस्तकालय की गतिविधियों से परिचित कराया। उन्होंने बड़े श्रम से इस काम को किया है। साधुवाद ! 8.12.99 हुकमचन्द जैन बी/क्यू. 161- ए, शालिमार बाग, दिल्ली- 110052 पिछले 20 वर्षों से आते - जाते 'कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ' संस्था का बोई देखता था। आज प्रथम बार देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। डॉ. अनुपम जैन की लगन और सोच के कारण शायद यह संस्था इतनी सुनियोजित प्रतीत हुई। अद्भुत शोध साहित्य अत्यन्त सुलभ तरीके से सरलता से उपलब्ध है। संस्था के मूल उद्देश्यों एवं लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निदेशक मंडल की सजगता ने भी मुझे प्रभावित किया। शुभकामनाएँ। 4.3.2000 - शांतिलाल गुप्ता 70 बी.जी., स्कीम नं. 74 - सी, विजयनगर, इन्दौर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के अनुरूप 'कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ' को लाना डा. अनुपम द्वारा ही संभव हो सका है। भारत के IIT स्तर के संस्थानों जैसा इन्दौर का यह संस्थान हो गया है, हो रहा है और आगे भी अब और बढ़ेगा। भारत के किसी भी जैन संस्थान में इतना सुव्यवस्थित कार्य नहीं है। प्रभु से यही प्रार्थना है कि कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ का कलेवर इतना विशाल हो जाये कि उदासीन आश्रम की सम्पूर्ण जगह भी अपर्याप्त साबित हो। 13.3.2000 . प्रो. मन्नालाल जैन इंजी. महाविद्यालय के पास, उज्जैन It feels good to see the progress and the speed of progress. 16.3.2000 . Dr. Dilip Bobra U.S.A. अर्हत् वचन, अप्रैल 2000 07

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