Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 51
________________ । अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 12, अंक - 2, अप्रैल 2000, 49 - 51 क्या डूंगरसिंह जैन धर्मानुयायी था? - रामजीत जैन* 00000000000ठमाण एक अप्रत्यक्ष सत्य परन्तु सत्यानुवेषियों को संकेत है सत्य को प्रत्यक्षदर्शी बनाने हेतु। कुछ तथ्य दे रहे हैं आगे बढ़ने के लिये। गोपाद्रौ देवपत्तन - वीरमेन्द्र देव ग्वालियर के तोमर राजा (सन् 1402 - 1423) थे और वि.सं. 1469 (सन् 1412 ई.) में कुन्दकुन्दाचार्य (प्रथम श.ई.) द्वारा रचित 'प्रवचनसार' की आचार्य अमृतचन्द्र कृत 'तत्व दीपिका' टीका की एक प्रतिलिपि वीरमेन्द्र के राज्य में ग्वालियर में की गई थी। इसके प्रतिलिपि काल और स्थल के विषय में निम्नलिखित पंक्तियाँ प्राप्त होती हैं - विक्रमादिय राज्येद्रस्मिचतुर्दपरेशते। नवष्ठवा युते कितु गौपाद्रौ देवपत्तने॥ प्रतिलिपिकार ने वि.सं. 1469 में ग्वालियर को 'देवपत्तन' कहा है। जैन तीर्थमालाओं में भी ग्वालियर का उल्लेख प्रसिद्ध तीर्थ रूप में किया है। इसलिये ज्ञात होता है कि ग्वालियर जैनियों के लिये 'देवपत्तन' था। अगणित मूर्तियाँ - अपभ्रंश भाषा के महाकवि रइधू ने 'सम्मत्तगुणविहाण कव्व' ग्रन्थ में नगर वर्णन प्रसंग में लिखा है - 'उसने (डूंगरसिंह) अगणित मूर्तियों का निर्माण कराया था। उन्हें ब्रह्मा भी गिनने में असमर्थ हैं।' श्री हेमचन्द्रराय का निम्न कथन दृष्टव्य है - 'राजा डूंगरसिंह जैन धर्म का महान पोषक था। उसके राज्यकाल में ग्वालियर दुर्ग की चट्टानों में जैन मूर्तियों के उत्कीर्ण करने का कार्य प्रारम्भ किया गया था। जो उसके उत्तराधिकारी राजा कीर्तिसिंह के काल में पूरा हुआ। विशाल अवगाहन वाली प्राचीन जिन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ सशक्त संरक्षकों की भांति महान दुर्ग एवं उसके आस - पास की भूमि पर दृष्टि रखते हुए प्रतीत होती हैं। चट्टानों में खुदी हुई मूर्तियों की शिल्पकारी देखकर बाबर अत्यधिक क्रोधित हआ और सन् 1557 ई. में उसने उन मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया।' (मूल अंग्रेजी में भावार्थ) यह ऐतिहासिक सत्य है कि तोमर वंश के राजा डंगरसिंह ने वि.सं. 1481 में राज्य संभाला। उसी समय से किले की चट्टानों में जिन मूर्तियाँ उत्कीर्ण करने का कार्य प्रारम्भ हुआ जो कला एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इसी कारण गोपाचल को कला तीर्थ माना जाता है।' सन् 1424 ई. में तंवर वंश के सिंहासन पर महाराजा डूंगरेन्द्रसिंह आसीन हुए। युद्धों के बीच उनका ध्यान विद्वानों, धार्मिक समारोहों और निर्माणों की ओर गया। महाराजा डूंगरेन्द्रसिंह के राज्यकाल में ही ग्वालियर गढ़ की चट्टानों में जैन प्रतिमाओं का निर्माण प्रारम्भ हुआ। सबसे पूर्व वि.सं. 1497 (सन् 1440) के तीन शिलालेख इस बात के सूचक हैं कि इनके आश्रय में अनेक जैन मतावलम्बियों ने उन विशाल जैन प्रतिमाओं का निर्माण प्रारम्भ करा दिया था जो आज ग्वालियर गढ़ को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन अभिलेखों में उल्लिखित जैनाचार्य देवसेन, यश:कीर्ति, जयकीर्ति एवं अन्य भट्टारक राज दरबार में पूर्ण समादृत होंगे इसमें सन्देह नहीं। खेद यही है कि अभिलेखों द्वारा प्राप्त * एडवोकेट, दानाओली, टकसाल गली, ग्वालियर - 1

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