Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 70
________________ और दृश्य आकार में फर्क होता है। दूरी के साथ- साथ दृश्य आकार भी घटता चला जाता है। जैन दर्शन ने आकाश द्रव्य लोकाकाश के माध्यम से दृश्यता को पूरा महत्व दिया है जिसमें किसी भी वस्तु के आकार को प्रधानता दी गई है। यहाँ मैं एक बार फिर उल्लेख करना चाहूंगा कि सूर्य एवं चन्द्र Equal and Opposite होते हुए ही पृथ्वी पर जीवन संभव एवं सुरक्षित है इस तरह सूर्य एवं चन्द्र हमारे जीवन के लिये बराबर के भागीदार हैं और इसी बराबरी को देखते हुए सूर्य एवं चन्द्र के दृश्य आकार लगभग बराबर होना मायने रखता है। इस पर अनुसंधान की अब सख्त जरूरत है। वैसे तो एक से भार वाली विभिन्न वस्तुओं के आकारों में बड़ा फर्क होता है। इसलिये इतना तो अवश्य है कि 'आकार' के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। क्योंकि बिना 'आकार' के ऊर्जा की कल्पना करना असंभव है अर्थात् आकाश द्रव्य एक ऊर्जा का ही रूप है जिसको जैन विचारकों ने अच्छी तरह समझ लिया था। प्राप्त 68 - 15.9.99 - * निदेशक प्रकृति एवं विज्ञान मूलभूत अनुसंधान केन्द्र, 10 गोस्वामी भवन, रंजी बस्ती, जबलपुर- 482005 A NEW EDITION OF GANITASARA SAM GRAHA OF ACARYA MAHAVĪRA An Ancient Jaina Mathematical Text in Sanskrata In Three Languages ENGLISH, HINDI AND KANNADA Editor : Dr. Padmavathamma Professor of Mathematics, University of Mysore, Mysore, India Is Now Published Under the Patronage of Rev. Devendrakirti Bhattaraka For Sri Siddhantakirti Granthamala Jain Matha of Humcha, Hombuja-577 436, Karnataka, India अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

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