Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 78
________________ समीक्षा तलमी प्रजा TULSI PRAJNA तुलसी प्रज्ञा - मौलिक शोध पूर्ण आ लेखों की त्रैमासिकी तुलसी प्रज्ञा, वर्ष- 26, अंक - 106, जुलाई - सितम्बर 1999 सम्पादक - मुमुक्षु डॉ. शान्ता जैन, लाडनूं प्रकाशक - जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं समीक्षक - डॉ. अनुपम जैन, इन्दौर जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं को प्रथम एवं एकमात्र जैन मानित विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त है। इस संस्था ने मानित विश्वविद्यालय बनने के पूर्व एवं बाद जैन साहित्य विशेषत: जैन श्वेताम्बर परम्परा के साहित्य के संरक्षण, आलोचनात्मक अध्ययन एवं प्रकाशन के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। इस संस्था की शोध पत्रिका "तुलसी प्रज्ञा' ने अपने प्रकाशन की रजत जयंती मना ली है। इस अंतराल में बहुत से उतार - चढ़ाव आये, कभी मासिक, कभी द्विमासिक, कभी त्रैमासिक या चातुर्मासिक भी रही किन्तु अनुसंधान पत्रिका नाम से प्रारंभ हुई इसकी विकास यात्रा के प्रत्येक पड़ाव पर यह शोध पूर्ण मौलिक आलेखों से परिपूर्ण रही। पत्रिका का समीक्ष्य नया अंक इसकी नव नियुक्त संपादिका डॉ. शांता जैन की मौलिक प्रतिभा तथा संपादकीय कौशल को प्रतिबिंबित करता है। प्रस्तुत अंक में संकलित 18 आलेख जैन विद्याओं की विविध शाखाओं से सम्बद्ध है तथा सभी मौलिकताओं से परिपूर्ण हैं। पत्रिका के मुद्रण स्तर में भी व्यापक सुधार हुआ है। सभी दृष्टियों से पत्रिका संग्रहणीय एवं स्वागत योग्य है। सुन्दर प्रस्तुति हेतु संपादक एवं प्रकाशक दोनों बधाई के पात्र है। भूलसंध और उखका प्राचीन साहित्य मूलसंघ और उसका प्राचीन साहित्य ADE पुस्तक - मूलसंघ और उसका प्राचीन साहित्य लेखक - पं. नाथूलाल जैन शास्त्री प्रकाशक - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर मूल्य - रु. 70/ समीक्षक - पं. नेमीचन्द शास्त्री, नौगांव - 471 209 जिला छतरपुर 'मूलसंघ और उसका प्राचीन साहित्य' में ज्ञान - मय - अनुभव वृद्ध पं. नाथूलालजी ने गवेषणात्मक विषयों पर गहन अध्ययन पूर्ण नीर - क्षीर विवेक न्याय से बिना किसी व्यामोह के सबको जानने के लिये खोजपूर्ण सामग्री इकट्ठी करके स्वस्थ परम्परा के लिये स्वस्थ विचार का जो अमूल्य पाथेय ग्रन्थ में दिया है, वह इतिहास का भी इतिहास बनेगा। ग्रन्थ में परीक्ष्य विषयों का तर्क सम्मत विश्लेषण किया गया है। यह ग्रन्थ जैन दर्शन के इतिहास विषय की परीक्षा में रखे जाने योग्य है। अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

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