Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 73
________________ टिप्पणी - 3 । अर्हत् वचन । ऊण्डेल की सुपार्श्वनाथ की परमारकालीन प्रतिमा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) - नरेशकुमार पाठक* मध्यप्रदेश के इन्दौर जिले की इन्दौर तहसील में कम्पेल - पेडमी मार्ग पर कम्पेल से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर उण्डेल स्थित है। यह 22°38' उत्तरी अक्षांस 76°4' पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। समुद्र की सतह से यह 2345 फीट ऊँचाई पर है। इस गाँव से प्राप्त भग्नावशेषों के साथ लघु पाषाण औजार प्राप्त हुए हैं, गाँव के बाहर तालाब के किनारे प्राचीन मंदिर के अवशेष एवं नक्कासीदार प्रस्तर बहुतायत मात्रा में बिखरे पड़े हैं। इनको देखकर प्रतीत होता है कि यहाँ मंदिरों का समूह रहा होगा। ग्राम के पश्चिम की ओर श्री जंगबहादुरसिंह के बगीचे में तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा रखी हुई है। पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के सिर पर कुन्तलित केश, जिनके ऊपर पाँच फण की नागमौलि का अंकन है। तीर्थकर के दोनों ओर चांवरधारी एवं एक - एक तीर्थकर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं। वितान में कायोत्सर्ग में तीर्थकर, विद्याधर युगल, गज, त्रिछत्र व दुन्दुभिक अंकित है। पादपीठ पर यक्ष मातंग, यक्षी शान्ता, काली या कालिका का अंकन है। पादपीठ के नीचे मध्य में चक्र जिसमें दोनों ओर विपरीत दिशा में मुख किये सिंहों का अंकन है। उपासक - उपासिकाओं के नीचे संभवत: पंच जिनेन्द्र अंकित हैं। इस प्रतिमा में सुपार्श्वनाथ का लांछन अंकित नहीं किया गया है। लगभग 12 वीं शती ईस्वी की प्रतिमा परमारकालीन है। ___सुपार्श्वनाथ का लांछन स्वस्तिक है। शिल्प में सुपार्श्वनाथ का लांछन कुछ उदाहरणों में ही उत्कीर्ण है। मूर्तियों में सुपार्श्वनाथ की पहचान मुख्यत: पाँच या नौ सर्पफणों के शिरस्त्राण के आधार पर की गई है।जैन ग्रन्थों में उल्लेख है कि गर्भ काल में सुपार्श्वनाथ की माता ने स्वप्न में अपने को एक, पाँच और नौ फणों वाले सर्पो की शय्या पर सोते हुए देखा था। वास्तु विद्या के अनुसार सुपार्श्वनाथ तीन या पाँच सर्पफणों के छत्र से शोभित होंगे। एक या नौ फणों के छत्रों वाली सुपार्श्वनाथ की स्वतंत्र मूर्तियाँ नहीं मिली हैं, पर दिगम्बर स्थलों की कुछ जिन मूर्तियों के परिकर में एक या नौ सर्पफणों के छत्रों वाली सुपार्श्वनाथ की कुछ लघु मूर्तियाँ अवश्य उत्कीर्ण हैं। स्वतंत्र मूर्तियों में सुपार्श्वनाथ सदैव पाँच सर्पफणों के छत्र से युक्त हैं। सर्प की कुण्डलियाँ सामान्यत: चरणों तक प्रसारित होती हैं। उण्डेल से प्राप्त उपरोक्त तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा इन्दौर जिले में जैन प्रतिमा के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। सन्दर्भ - 1. इ. आ. रि., 1958-59, पृष्ठ 27 2. तिवारी मारूति नन्दन प्रसाद, 'जैन प्रतिमा विज्ञान', वाराणसी, 1981, पृष्ठ 100-191 * संग्रहाध्यक्ष - केन्द्रीय संग्रहालय, ए. बी. रोड़, इन्दौर प्राप्त - राष्ट्र की धड़कनों की अभिव्यक्ति नवभारत टाइम्स अर्हत् वचन, अप्रैल 2000 71

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