Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 61
________________ जो कुछ भी पांचों इन्द्रिय के ग्रहण योग्य दिखलायी पड़ता है वह पुद्गल है। क्रिया स्वभाव युक्त वस्तु को पुद्गल कहते हैं। धर्म - अधर्म - गति स्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरूपकार: जो जीव और पुद्गलों को चलने में सहायक है वह धर्मद्रव्य है जो ठहरने में सहायक होता है वह अधर्मद्रव्य है। आकाश आकाशस्यवगाह: 10 जो सब द्रव्यों को ठहरने के लिए स्थान देता है उसे आकाश कहते हैं। जीवविज्ञानी डा. एम. गुप्ता ने अपने शोध पत्र Ecological Aspect of Indian Myth में कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा अपने धर्म में अटूट आस्था,विश्वास के द्वारा ही होती ___ "विख्यात वैज्ञानिक फ्रिटजौफ काप्रा ने अभी कुछ ही समय पहले प्रकाशित अपने ग्रन्थ The Wave of Life में Deep Ecology को मानव समाज व प्रकृति के अन्तर्सम्बंधों के क्रियात्मक पहल के रूप में निरूपित किया है काप्रा ने इसे धार्मिक व आध्यात्मिक तथ्यों से जोड़ने का प्रयास किया है। पर्यावरण की सुरक्षा अपने धर्म में आस्था एवं विश्वास से की जा सकती है जहां वैदिक धर्म में भूमि, जल, अग्नि, वनस्पति, नदी, पर्वत को पूजनीय माना जाता है जो पर्यावरण संतुलन के लिए सर्वोत्कृष्ट सिद्धांत है और पूजनीय के प्रति विध्वंसक या हानिकारक कार्यवाही अन्तरात्मा से ही अक्षम्य मानी जाती है। उसी तरह जैन साहित्य में अग्नि, वायु, पृथ्वी, जल, वनस्पति में जीवन स्वीकार किया गया है। पुढ़वी या उदगमगणी वाउ वणत्फदि जीव संसिदा काया देति खलु मोहबहुलं फासं बहुगा वि ते तेसिं। 13 पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय ये पाँच स्थावरकाय के भेद हैं, वे एकेन्द्रिय जीव से सहित हैं। निश्चय से उन जीवों को मोहगर्भित बहुत परद्रव्यों से राग उत्पन्न करते हैं, स्पर्शनेन्द्रिय के विषय को देते हैं। वनस्पति के संदर्भ में महान वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने यही कहा है। उन्होंने इंग्लैण्ड में अपने वैज्ञानिक प्रयोग के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि पौधे हमारी तरह दुख - दर्द का अनुभव करते हैं। ___ केप्टन स्ववोर्सवी ने जल में नंगी आंखों से न दिखने वाले जलकाय जीवों का सूक्ष्मदर्शी से अध्ययन किया है। मन, वचन, काय से किसी जीव के द्रव्य प्राण या भावप्राण को कष्ट पहुंचाना हिंसा है। 14 उपरोक्त पांच प्रकार के जीव स्थावर हैं। इसके अतिरिक्त त्रस जीव हैं जिसमें मनुष्य भी सम्मिलित हैं। स्पर्श और रसना इन्द्रिय को प्राप्त हुए शंख, अलिशीप, मोती अर्हत् वचन, अप्रैल 2000 59

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