Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 56
________________ प्रदान करने या प्राप्त होने की क्षमता आकार ग्रहण करने लगती है। फलों से खाद्य - पेय, रेशों से वस्त्र - थैले, रस भरे घंट तथा इन सभी वस्तुओं के विक्रय से प्राप्त होने वाली विशाल धन राशि, इससे कल्पवृक्ष की सभी विशेषताएँ एक साथ परिलक्षित होती है। आज के इस भौतिकवादी युग में वृक्ष सभी आधुनिक सुख सुविधाएँ प्रदान करने में भले ही समर्थ प्रतीत न हों किन्तु आडम्बर विहीन, सरल, शांत पुरातन काल में जब आवश्यकताएँ अत्यल्प थीं, कल्पवृक्षों से सभी कामनाओं की सहज रूप से पूर्ति होना असंभव प्रतीत नहीं होता। भारत शासन ने सन् 1987 में स्तम्भ शीर्ष अंकित इस कल्पवृक्ष पर एक डाक टिकिट भी प्रकाशित किया था। दक्षिण भारत के समुद्र तटों पर अधिकता से पाये जाने वाले नारियल के वृक्षों को भी कुछ अर्थों में आधुनिक कल्पवृक्ष के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। कल्पवृक्ष के अनुरूप इन वृक्षों से भी स्वादिष्ट खाद्य, मधुर पेय तो उपलब्द होते ही हैं, इनकी जटाओं के रेशे से वस्त्र, तनों से काष्ठ व ईंधन तथा इनके व्यवसाय से भरपूर अर्थ लाभ भी सहज ही प्राप्त होता है। केरलवासी तो इन्हें तीवन तरू या कल्पवृक्ष कहते भी हैं। यहाँ एक कहावत प्रचलित है कि जो नारियल का वृक्ष लगाता है वह अपने लिये पात्र, वस्त्र, भोजन, पेय, घर आदि का प्रबन्ध तो करता ही है अपने वंशजों के लिये भी एक अच्छी एवं स्थायी जायदाद छोड़ जाता है। नारियल के वृक्षों को कल्पवृक्षों के अनुरूप स्वीकार करने से यह भी सहज सिद्ध हो जाता है कि प्राचीन काल में भारत या दक्षिणी भाग जैन धर्म एवं जैन संस्कृति का एक महान केन्द्र था। आज भी भारत के इस भूभाग में जैन धर्मस्थलों, जैन प्रतिमाओं एवं जैन धर्मानुयायियों की सख्या कम नहीं है। पूर्वी भारत की सराक जाति की भाति धर्म परिवर्तन के बाद भी यहाँ की कुछ जातियों के आचार - विचार आज भी जैन धर्मानुकूल हैं तथा भगवान पार्श्वनाथ एवं उनकी यक्षी पद्मावती उनके आराध्य हैं। वृद्ध लोग यह भी स्वीकार करते हैं कि उनके पूर्वज जैन थे। कई गाँव तो आज भी पूरे के पूरे जैन धर्मानुयायी हैं। भले ही उनके व्यवसाय भिन्न-भिन्न हैं। विस्तृत कलापूर्ण जिनालय, विविध गुफाओं एवं रत्न निर्मित दुर्लभ एवं अति मूल्यवान जिन प्रतिमाओं के अतिरिक्त गोम्मटेश्वर बाहुबली की अनेक विशाल प्रतिमाओं के कारण यह प्रदेश आज भी जैन धर्म एवं जैन संस्कृति से परिपूर्ण है, दर्शनीय है। प्राप्त - 1.7.99 अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

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