Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 57
________________ को विदिशा के उपनगर बेस नगर में भगवान शीतलनाथ के प्रतीक चिन्ह कल्पतरू युक्त एक आश्चर्यप्रद पाषाण निर्मित विशाल स्तम्भ शीर्ष प्राप्त हुआ था। कल्पवृक्ष के समस्त गुणों को साकार रूप प्रदान करता हुआ यह स्तम्भ शीर्ष समस्त भारत में एकमात्र स्तम्भ शीर्ष है। वर्तमान में यह कलानिधि, कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में प्रदर्शित है। विदिशा - वेस नगर में प्राप्त स्तम्भ शीर्ष पर उत्कीर्णित यह कल्प वृक्ष एक चौकोर चौकी के मध्य स्थित है। वृक्ष की ऊँचाई पाँच फुट नौ इंच तथा ऊपरी भाग का घेरा तीन फुट तीन इंच है। इसका प्रारम्भिक भाग गोलाकार है जिसे प्रस्तर निर्मित एक कलापूर्ण जाली द्वारा चारों ओर से घेर दिया गया है। साधारण दृष्टि से यह एक विशाल वट वृक्ष का लघु रूप प्रतीत होता है किन्तु यह वट वृक्ष नहीं है। वक्ष के ऊपरी भाग से निकल रही शाखा ही नीचे तक लटक रही है। वृक्ष के निम्न भाग में चारों ओर चार थैलियाँ लटक रही हैं। दो-दो थैलियों के मध्य एक घट निर्मित है जिनमें ऊपर तक मुद्रायें भरी हुई हैं। वृक्ष पत्रों से भरा हुआ है जिनके बीच में झांकते रसीले, गोलाकार, मनोहर फल दृष्टिगोचर होते हैं। चौकी पर वृक्ष के चारों ओर चार लघु स्तम्भ निर्मित हैं जिन्हें लम्बाकार मुंडेरों द्वारा एक दूसरे में पिरोकर एक सुन्दर बाड़ का रूप दे दिया गया है। - प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता जार्ज कनिंघम, कुमार स्वामी, वासुदेवशरण अग्रवाल आदि इसे कल्पवृक्ष का प्रतीक स्वीकार करते हैं। निर्माण कला की दृष्टि से इसका निर्माण काल ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी निर्धारित किया गया है। इसी काल में दक्षशिला निवासी दिय का पुत्र हेलिओदोरस यवनराज अन्तलिकित के राजदत के रूप में विदिशा आया था तथा उसने विदिशा के विष्ण मंदिर के समक्ष एक गरूढध्वज स्तम्भ का निर्माण करवाया था। सांची के इतिहास प्रसिद्ध स्तपों का निर्माण भी इसी क्रम में हुआ था। कुछ पुरातत्वविद् कल्पवृक्ष की अनुकृति को शुंग काल के पूर्व मौर्यकाल में निर्मित मानते हैं। मौर्यकाल में जैन धर्म अपने उत्कर्ष पर था। _जैन आगम एवं जैन इतिहास के मनीषी विद्वान स्वीकार करते हैं कि विदिशा दसवें तीर्थकर शीतलनाथ की जन्मभूमि है तथा उन्होंने विदिशा के समीपस्थ गिरि शिखरों पर तपश्चरण किया था। अति प्राचीन काल में यह नगर भदिदलपुर, भद्रिलपुर, भद्रपुर या भद्रावती आदि अनेक नामों से विख्यात रहा है। उत्तर पुराण में भदिदलपुर की स्थिति विंध्यांचल पर्वतमाला के उत्तर में दिखाई गई है। वर्तमान विदिशा की भी यही स्थिति है। दर्शाण प्रदेश की यह राजधानी थी। दर्शाण के शासक महाराज दर्शाणभद्र ने भगवान महावीर के विहारकाल में विदिशा में आयोजित उनके समवशरण में मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। प्रस्तर निर्मित कल्पवृक्ष का यहाँ पाया जाना इस तथ्य को सुनिश्चित करता है कि तीर्थंकर शीतलनाथ के विशाल एवं भव्य जिनालय के समक्ष स्थापित था। स्तम्भ शीर्ष पर निर्मित इस वृक्ष को देखकर कल्पवृक्ष द्वारा सभी इच्छित वस्तुएँ 54 अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

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