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को झंकृत करता है और 'मो' मधुर ध्वनि के कारण 'ॐ' की ध्वनि को धारण कर लेता है। हिन्दी वर्णमाला का यह 25 वां व्यञ्जन है। 25 का योग 2 + 5 = 7 है। सात स्वरों में सूर्य की सप्त रश्मियों का प्रभाव होने से पंचतंत्री वीणा (कायपिण्ड) की झंकार का आनन्द साध - संत एवं योगी प्राप्त करते हैं। सांसारिक व्यक्ति मोह - माया के चक्कर में फंसा रहने से वह मंत्र साधना के माध्यम से क्षणिक लाभ के लक्ष्य से मंत्र का जाप करता है। उसे लाभ अवश्य होता है पर वह पंच तंत्री वीणा की झंकार का आनन्द नहीं ले सकता। क्योंकि महामंत्र के पाँचों पद पंच तत्वों से सम्बन्धित हैं। सम्पूर्ण मंत्र में आकाश तत्व - 17, वायु तत्व - 7, जल तत्व - 5, अग्नि तत्व - 2 और पृथ्वी तत्व - 4 हैं। कुछ विद्वानों ने आकाश तत्व की संख्या 12 मानी है। उन्होंने 'णमो' शब्द को मिश्रित कर आकाश तत्व की संख्या एक मानी है जबकि 'ण' और 'म' ध्वनि के रंग, वार एवं राशि पृथक - प्रथक हैं।
उपर्युक्त तत्वों की संख्याओं के अनुसार वीणा वाद्य पर 17 सुन्दरियों (परदे) पर सप्त स्वरों को दर्शाया जाता है। 5 का अर्थ है पंचम का तार, 2 का अर्थ जोड़े के नाद और म का अर्थ मध्यम स्वर अर्थात् बाज का तार से संबंध बनाता है। अत: महामंत्र के पांचों पद पंच तंत्री वीणा के अनुरूप हैं। वीणा का यह बाह्य रूप नहीं है इसका संबंध अन्तरात्मा से है। सन्दर्भ - 1. संगीत रत्नाकर 2. भारतीय श्रुति स्वर रागशास्त्र 3. नाद योग 4. ॐ नाद ब्रह्म (मराठी पत्रिका) 5. अमृत कलश 6. समस्या समाधान पत्रिका 7. संगीत मासिक
प्राप्त -8.4.99
अर्हत् वचन, अप्रैल 2000