Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 40
________________ हम सब केवल आंशिक सत्य को जान सकते हैं। कोई भी वैज्ञानिक / दार्शनिक कितना ही महान क्यों न हो, सम्पूर्ण सत्य को नहीं जान सकता है क्योंकि हमारे जो ज्ञान है वह सीमित है। जिस प्रकार हमारे पास अनन्त आकाश होते हुए भी हम अनन्त आकाश को देख नहीं सकते हैं क्योंकि हमारी दृष्टि शक्ति सीमित है। तीर्थंकर एक साथ कितनी भाषायें बोलते हैं - 718 भाषाएं बोलते हैं। इसलिये समस्त ज्ञान - विज्ञान के जन्मदाता तीर्थंकर हैं। उसके बाद सम्पादन करते हैं गणधर। समस्त कलाओं विद्याओं का प्रतिपादन आदिनाथ भगवान ने किया था। परन्तु उसका प्रायोगिक रूप में संक्षिप्त वर्णन मैं आज करूंगा। भारतीय संस्कृति में 6075 वर्ष पूर्व एक धन्वन्तरि हुए हैं जो कि शल्य - चिकित्सा और रसायन शास्त्र के प्रवक्ता थे। उसी प्रकार अश्विनीकुमार थे जो औषध / आयुर्वेद के माध्यम से चिर युवा रहे। एक ऋषि थे जिनका नाम था - च्यवन ऋषि। वो वृद्ध थे। इसलिये च्यवन ऋषि को अश्विनीकुमार ने औषधि दी जिसके माध्यम से वे वृद्ध ऋषि युवक बन गये। इसी औषधि का नाम च्यवनप्राश पड़ा। हमारे प्राचीन ग्रन्थ चरक संहिता तथा आयुर्वेद के अन्य ग्रंथों में इनका वर्णन है। इसके बाद पुन: वसु आत्रय हुए। वे ईसा के 2800 वर्ष पूर्व हुए। उन्होंने सभी शिक्षा पद्धतियों - आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा का प्रतिपादन किया एवं शिष्यों को कराया। हिपोक्रिटिश यूनानी थे। ये शल्य चिकित्सा के आद्य प्रवक्ता थे। लिखित रूप में उन्होंने ग्रंथ लिखा सुश्रुत संहिता। इतिहासकार मानते हैं कि हिपोक्रिटिश आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा के आविष्कारक हैं, परन्तु उनसे भी कई हजार वर्ष पूर्व लिखित रूप में प्रयोग रूप में हमारे देश में शल्य चिकित्सा से लेकर अन्य प्रकार की शिक्षा व चिकित्सा थी। इस शल्य चिकित्सा का आविष्कार भी भारत में हुआ। हमारे मूल ग्रन्थों चरक संहिता, बागमट् संहिता, योगरत्नाकर आदि में इनका वर्णन मिलता है। ईसा पूर्व 600 वर्ष पहले भारत, ग्रीक आदि कुछ देशों को छोड़कर अन्य देश अनंत अंधकार में थे। उन्हें अंक व अक्षर का ज्ञान नहीं था और हमारे यहाँ सभी था। इन सबके साक्षी हमारे शिलालेख और ग्रंथ हैं। सुश्रुत नाक, कान, गले, आँख इन सभी की शल्य चिकित्सा करते थे। एक स्थान से मांस काटकर वे अन्य स्थान पर जोड़ देते थे। उन्होंने शल्य चिकित्सा के 120 प्रकार के यंत्रों का आविष्कार किया था। जीवक बुद्ध के चिकित्सक थे। एक सेठ की लड़की थी, जिसकी उल्टी के माध्यम से अन्दर की आंतड़ियाँ बाहर निकल गई और जीवक ने शल्य क्रिया (Operation) करके पुन: उसको स्थापन कर दिया। हमारे भारत में पशु - पक्षी की सुरक्षा और उसकी चिकित्सा पद्धति का भी आविष्कार किया गया। आदिनाथ भगवान की दो पुत्रियाँ थीं -ब्राह्मी और सुन्दरी। भरत, बाहुबलि को उन्होंने पहले विद्यादान देकर ब्राह्मी और सुन्दरी को भी विद्यादान दिया। क्योंकि विद्यादान के पहले आदिनाथ भगवान कहते हैं - विद्यादान पुरुषो लोके सम्मति याति कोविदैः। नारी च तद्धति घत्ते स्त्री सृष्टेरग्रिमं पदम्॥ जिस प्रकार विद्यावान पुरुष समाज में असीम पद प्राप्त करते है। उसी प्रकार शिक्षा प्राप्त करके स्त्री समाज में असीम स्थान प्राप्त करती हैं। इसलिये स्त्री शिक्षा भगवान आदिनाथ ने प्रारम्भ की क्योंकि माता प्रथम गुरु होती हैं। इससे सिद्ध होता है कि पुरुष शिक्षा से महत्वपूर्ण स्त्री शिक्षा है। परन्तु मध्यकालीन परतंत्रता के कारण हम स्त्री शिक्षा को भूल गये और प्रतिलोमी बन गये। हमनें स्त्री शिक्षा के महत्व के बजाये पुरुष शिक्षा पर जोर दिया और स्त्री को सिर्फ भोग की वस्तु मान लिया। आदिनाथ ब्राह्मी और सुन्दरी 38 अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

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