Book Title: Arhat Vachan 2000 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ वजन करो। फिर वह हाथी के बराबर वजन हो जायेगा। आजतक हम यह जानते हैं कि हवाई जहाज का आविष्कार राइट ब्रदर्स ने किया था लेकिन पुष्पक विमान जो काफी बड़ा था उसका निर्माण महाभारत काल के पूर्व हो चुका था, जिसका निर्माण हिन्दू धर्म के अनुसार बह्मा ने किया और कुबेर को दिया। कुबेर से रावण युद्ध करके ले आया। पुष्पक विमान एक योजन (12 कि.मी.) लम्बा था और चौड़ाई (6 कि.मी.) आधा योजन थी। उसमें लाखों मनुष्य, हजारों हाथी - घोड़े, शस्त्र, भोजन, बगीचा, व्यायामशाला, तालाब आदि होते थे। ___आर्यभट सन् 476 में गुप्त काल में हुए और उन्होंने आर्य सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। शून्य का आविष्कार वर्षों पूर्व हो गया था। लेकिन शुन्य का लिपिबद्ध रूप में प्रयोग आर्यभट ने किया। त्रिकोणमिति में SinB, CosB को भी आर्यभट्ट ने दिया। आर्यभट्ट द्वितीय सन् 950 में हुए। उन्होंने महान सिद्धान्त दिये। रायल सोसायटी जो कि इंगलेंड में है ऐसी ही संस्था की स्थापना भारत में 1500 वर्ष पूर्व हुई थी। इसमें केवल विशिष्ट वैज्ञानिक ही सदस्य बन सकते थे। दूसरों के लिये इसमें कोई स्थान नहीं था। इसे ही विक्रमादित्य के नवरत्न पंडित कहते थे। उनमें से एक थे वराह मिहिर। उन्होंने वृहत् संहिता ग्रन्थ लिखा। उसमें ऋतु विज्ञान, कृषि विज्ञान के बारे में विस्तार से लिखा गया था। सभी विषय के वैज्ञानिक व गुरु हमारे भारत में थे जिन्होंने सर्वप्रथम धार्मिक दार्शनिक आविष्कार किये। इसलिये हमारा देश विश्वगुरु कहलाया। हमारा भारत विश्वगुरु रहा है यह केवल भारतीयों का गुणगान नहीं है। ठोस आधार पर सिद्ध है कि हमारा भारत विश्वगुरु रहा। अभी भी हमारे पास क्षमता, शक्ति व उपलब्धि है, केवल हमें जागना है। जैसे एक व्यक्ति के घर में गढ़ा हुआ करोड़ों का धन, सम्पत्ति है लेकिन उसे मालूम नहीं है कि हमारे यहाँ सम्पत्ति है तो जीवन भर केवल गरीब व अज्ञानी रहेगा। यदि मालूम होगा तो परिश्रम कर सम्पत्ति निकालेगा तो धनपति बन जायेगा। इसी प्रकार हमारे पास सब कुछ होते हुए भी जिस प्रकार कि मृग की नाभि में कस्तूरी होते हुए भी वह इधर - उधर भटक कर उसे ढूंढ़ता रहता है, उसी प्रकार हम हमारे मूल उद्देश्य से भटक गये, हम विछिन्न हो गये। जिस प्रकार वृक्ष मूल से कट जाता है तो कितना भी पानी पिलाओ. वह हरा नहीं होता है। उसी प्रकार हम मूल से कट गये तो कितना सिंचन करने पर हम विकसित नहीं हो पायेंगे। इसलिये हमे मूल से जुड़ना है। पुन: हमारी भारतीय संस्कृति, सभ्यता के ज्ञान - विज्ञान को पल्लवित करके पुष्पित करना है और दिखा देना चाहिये कि हमारा भारत विश्वगुरु था, अभी क्षमता रूप में है, भविष्य में इसे विश्वगुरु बनना है और 21वीं शताब्दी का स्वागत हमें ज्ञान क्रांति, प्रगति से करना है। उसके स्वागत के लिये यह संगोष्ठी है। यह संगोष्ठि 21वीं शताब्दी के आह्वान के लिये, स्वर्णिम व प्रकाशवान बनाने के लिये आयोजित की गई है और उसके लिये ही समर्पित है। प्रस्तुति सहयोग - समता जैन, सलूम्बर प्राप्त - 15.1.2000 अर्हत् वचन, अप्रैल 2000

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104