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प्रसन्नता की बात है कि दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी ने जैनविद्या संस्थान के अन्तर्गत १९८८ में 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना करके अपभ्रंश भाषा को सिखाने का कार्य पत्राचार के माध्यम से प्रारम्भ किया। इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु 'अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ','अपभ्रंश काव्य सौरभ' आदि कई पुस्तकें अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित हैं। इसी क्रम में 'अपभ्रंश पाण्डुलिपि चयनिका' विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत की जा रही है। इसमें जिन काव्याशों का संग्रह है उनका आधुनिक पद्धति से रूपान्तरण भी इसी पुस्तक में दे दिया गया है। विद्यार्थी पाण्डुलिपि के काव्यांशों और रूपान्तरण की तुलना करके पाण्डुलिपि को पढ़ना सीख सकेंगे और उसका समुचित अभ्यास कर सकेंगे।
इस चयनिका में राजस्थान के उन शास्त्र भण्डारों का परिचय भी प्रस्तुत है जहाँ प्राकृतअपभ्रंश की पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं। इस सामग्री का चयन मुख्यतया जैनविद्या संस्थान (पूर्व में साहित्य शोध विभाग) द्वारा प्रकाशित एवं डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल तथा पण्डित अनूपचन्द 'न्यायतीर्थ' द्वारा सम्पादित 'राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची' के पाँच भागों से किया गया है।
__इसमें जो चार्ट दिया गया है वह स्व. पंडित भंवरलालजी पोल्याका 'जैनदर्शनाचार्य' द्वारा तैयार किया गया था।
उक्त चयनिका के प्रकाशन के लिए हम अपभ्रंश साहित्य अकादमी के विद्वानों विशेषतया सुश्री प्रीति जैन, श्रीमती शकुन्तला जैन एवं श्रीमती शशि प्रभा जैन के आभारी हैं।
मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राईवेट लिमिटेड धन्यवादाह हैं। नरेशकुमार सेठी नरेन्द्र पाटनी डॉ. कमलचन्द सोगाणी अध्यक्ष मंत्री
संयोजक प्रबन्धकारिणी कमेटी
जैनविद्या संस्थान समिति दिगम्बर जैन अतिक्षय क्षेत्र
जयपुर श्री महावीरजी 31 मार्च, 2007; महावीर जयन्ती, वीर निर्वाण सम्वत् 2533
अपभ्रंश-पाण्डलिपि चयनिका
(VIII)
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