Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 92
________________ पाठ १ महापुराण ण्णहीणि जिणगुण संभरणु व। णिद्धणि णिग्गुणि विहलुद्धरणु वाघत्ता॥ थिउ चक्कु ण पुरवरि पइसरइ णावइ केण वि धरियउ। ससि विंवु व णहि तारासयहिं सुरणरेहि परियरिठ॥३॥ आरणालं॥ ता भणियं णिराइणा रुढराइणा। चंडवाउ वेयं । किं थियमिह रहंगयं। णिच्चलंगयं तरुणतरणितेयं ॥ तं णिसुणेप्पिणु भणइ पुरोहिउ। जेणेयहु गइपसरु णिरोहिउ। अक्खमि तं णिसुणहि परमेसर देवदेव दुजय भरहेसर। भुय जुयवल पडिवल विद्दवणहं पयभरंथिरमहियल कंपवणहं । तेओहामियचंददिणेसहं जणदिण्णमहिलच्छिविलासहं । कित्तिसत्तिजणमेत्तिसहायहं को पडिमल्ल एत्थु तुह भायहं। सेव करंति ण तुह भाईवइ। णउ णवंति तुह पयराईवइ। दिति ण करभरु केसरिकंधर। पर मुहियए भुंजंति वसुंधर। अज्ज वि ते सिझंति ण जेण जि। पइसइ पट्टणे चक्कु ण तेण जि ॥घत्ता ॥ रइवरु परमेसरु उच्छुधणु धरणिहरणरणपरियरु। कासवतणुरुहु णवणलिणमुहु। भुयाणुद्धरणधुरंधरु॥४॥ आरणालं॥ विलसियकुसुममग्गणो गरुयगुणगणो। तरुणिहिययथेणो। असरिसविसमसाहसो। विस हयालसो णिहयवेरिसेणो॥ अण्णु वि जसवइ तणयह जे?उ पुत्तुसुणंदहि तुज्झु कणि?उ। सायरु जह तह मयरधयालउ। चावहं चारु वयण च। णिवकुमारवासं। दुमदललुलियतोरणं। रसियवारणं। छिण्णभूमिदेसं ॥ तेहिं भणिय ते विणउ करेप्पिणु सामिसालतणुरुह पणवेप्पिणु। सुरणरविसहरभयई जणेरी करहु केर णर णाहहो केरी। पणवह किं वहएण पलावें। पहइ ण लब्भइ मिच्छागावें। तं णिसणेवि कुमारगण घोसइ। तइ पणवहं जइ वा ण दीसइ। तइ पणवहुँ जइ सुथिरु कलेवरु। तइ पणवहुं जइ जीविउसुंदरु। तइ पणवहुं जइ जरए ण झिज्जए। तइ पणवहुं जइ पुट्ठि ण भज्जइ। तइ पणवहुं जइ वलु णोहट्टइ। तइ पणवहुं जइ सुइ ण विहट्टइ। तइ पणवहुं जइ मयणु ण फिट्टइ। तइ पणवहुं जइ आउण खुट्टइ। कंठे कयंत पासु ण चहुट्टए। तइ पणवहुं जइ रिद्धि ण तुट्टइ ॥घत्ता॥ जइ जम्मजरामरणइं हरइ चउ गइ दुक्खई वारइ। तो पणवहुं तासु णरेसरहो। जइ संसारहो अपभ्रंश-पाण्डुलिपिचयनिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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