Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 101
________________ पाठ ५ सुदंसणचरिउ सालंकारे सुकवि सुकइभणिदे जं रसं होइ कव्वे ॥ छ॥ मंदक्रांता ॥ छ॥ रामो सीयविओयसोयविहुरं संपत्तु रामायणे। जादा पंडव घाय? सददं गोत्तक्काले भारहे। डेड्डा कोलिय चोररज्जुणिरदा आहासिदा सुद्दए। णो एक्कं पि सुदंसणस्स चरिए। दोसं समुब्भासिदं॥ छ॥ सार्दूलविक्रीडितं क्रवकं ॥ छ॥ सतरंगहि गंगहि गोउ किर। जाव जवि णउ गछइ। ता सुहमइ जिणमइ सयणयले। सुत्तिय सिविणय पेच्छइ॥छ। सुरचित्तहरो सिहरी पवरो। णवकप्पयरो। अमरिंदघरो। पउरंवुणिही पजलंतु सिही। सुविराइयओ अवलोइयओ। पसरम्मि सही। वरसुद्धमई। गय सिग्घ तहिं थिउ कंतु जहिं । णिसि लक्खियओ। तसु अक्खियओ। पभणेइ पई। पिय हंसगई। लइ जाहु यरं। जिण चेइ हरं । अविलंवझुणी। भयवंतमुणी। पयडंति अलं। सिविणस्स हलं। चलहारमणी। चलियारमणी। भणिओ रमणी। इय छंदु मुणी॥ घत्ता॥ गय जिणहरु मुणिवर परिणविवि। जिणदासिए णिसि दिट्ठउ। गिरिवरु तरु सुरहरु जलहि सिहि। इय सिविणंतरु सिट्ठउ॥१॥ किं फलु इय सिविणहदंणेण। होसइ परमेसर कहि खणेण। इय णिसुणिवि। णवजलहनसरेण। सुणि सुंदरि पभणिउ मुणिवरेण। उत्तुगें गिरि भरभारियघरेण होसइ। सुधीरु सुउ गिरवरेण। कुसुमरयसुरहिकयमहुयरेण। चायउ लछीहरु तरुवरेण। सुररमणियकीलणमणयरेण। सुरवंदणीउ वरसुरहरेण। जललहरियध्रुविय अंवरे। ण गुणगणगहीरु रयणायरेण । अइणिविडजडत्तविणासणेण कलिमलु णिड्डहइ हुयासणेण । सुंदरु मणहरु गुणमणिणिकेउ। जुवई जणवल्लहु मयरकेउ। णियकुलमाणससररायहंसु। णिमछरु वुहयणलद्धसंसु। उवसगु सहेवि हवेवि साहु। पावेसइ झाणे मोखलहु। जिणु मुणि णवेवि हरिसियमणाइ। णियगेह गयइ विण्णि वि जणाइ। गोओ वि णियाणे तहि मरेवि। थिउ वणिपियउयरइ अवंयरेवित्तिा ॥ तहि गब्भइ अब्भइ णाइ रवि। कमलिणिदलि णावइ जलु। सिप्पिउडए णिविडए थिउ सहए। णं णित्तुलु मुत्ताहलु ॥ २॥ परहो रिद्धि पेखिवि णं दुजण। कसणवण्ण जाय। अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका Jan Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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