Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 108
________________ चइताए । दसरहु ठिउ पव्वज्ज लएप्पिणु। पंचमुट्ठि सिरिलोड करेप्पिणु । तेण समाणु सणेहें लइयउ । चालीसोत्तरु सउ पव्वइयउ । कंठा कडा मउड अवयारिवि । दुद्धर पंच महावय धारिवि । थिय णीसंग णाग णं विहर। अहवइ समय वाल णं विसहर । णं केसरि गय मासहारिय । नं परदार गमण परदारिय । कोप वि गंपि कहिउ भरहेसहो । गय सोमित्तिराम वणवासहो। वि वयणु धुयवाहउ पडिउ महीहरो व्व वज्जाहउ ॥ घत्ता ॥ जं मुच्छावि उ । सलु वि जणु मुह कायरु । पलयाणल संतत्तु । रसह लग्गु णं सयरु ॥ ६ ॥ चन्दणेण पव्वालिज्जंतउ। चमरुक्खेवहिं विज्जिज्जत । दुक्खु दुक्खु आसासिउ राणउं । जढर मयंकु व थिउ विद्दाणउं । अविरल अंसु पलोल्लिय णयणउं । एवं पयं पिउ गग्गर वयणउं । निवडिय अज्जु असणि आयासहो। अज्ज अमंगलु दसरह वंसहो । अज्जु जाउ हउं सूडिय वक्खउ दुह भायणु पर मुह उप्पेक्खउ । अज्जु णयरु सिय संपय मेल्लिउ । अज्जु रज्जु पर चक्कें पेल्लिउ । एम पलाउ करेवि सहमग्गए । राहव जणणिहे गउ अलग्गउ। केस विसंठुल दिट्ठ रुयंती अंसु पवाह धाह मेल्लंती ॥ घत्ता ॥ धीरिय भरह नरिंदे। होउ माइ महु रज्जें । आणमि लक्खण रामु रोवहि काई अकज्जे ॥ ७ ॥ एम भणेवि भरहु सं. Jain Education International अपभ्रंश - पाण्डुलिपि चयनिका For Private & Personal Use Only (93) www.jainelibrary.org

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