Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 123
________________ पाठ १३ धण्णकुमारचरि तेत्तहिं जाइवि थक्कउ। गिहि ण एइ सो भएण वि लुक्कउ । एतहिं तासु जणणि णेहाउर । भायहु जंपइ सा परसक्खर । चंड वाउ घणमाला गज्जइ। भायरु पच्छिम उवहि णिमज्जइ । वच्छउलई आयई एकल्लई । तुव भाणिज्जहु हुय गुरुवेलई | महु मणु तें कारणु वहु झूरइ । पुत्तहु दंसणि . आस ण पूरइ ॥ घत्ता ॥ सो कहि पुणु थकउ णेह गुरुक्कउ । आणहु जोइवि भायवर । सो ताहि जि वयणें । पालिय णयणे चल्लिउ मेल्लिवि णरपवर ॥ १४॥ लउडि खग्ग सव्वेहिं करि धारिय। भोगवई चल्लिय विणिवारिय । दूरहु हुंतिं तेण णियच्छिय । हक्क दिंत आवंत वि पेच्छिय। एयहु मारणथि इह आवहि । वच्छउलई णउं कथ वि पावहिं । इय मणि मंतिवि पुणु भयतट्ठउ । पच्छउ वलिवि णिएइ वणि णट्ठउ। ते वोल्लावहिं भो गहि आवहि। एहि एहि मा भयवसु धावहि । वच्छउलहं णियगेहि पराणिय । तुहु इ थक्कु ण पइए जाणिय। तुज्झु जणणि तुअ दुक्खें सल्लिय । मा वणि जाहि मुइवि एकल्लिय । तह वि ण सो णियत्तु भयभीयउ । मुणइं पवंचु सयलु इणि कीयउ । जाय रयणि ते सीह भयाउर । पल्लट्टिवि गय ते पुणु णियघर। तासु जणणि महदुखें तत्ती । हुय णिरास खणि पगलियणेत्ती । हा हा किहं सुवदंसणु होस । दुट्ठ विहिहिं पुणु पुणु सा कोसइ। भाय भाय हा किम जीवेसमे । सुवाहु सुवत्तु केम पेच्छेसमे। हा हा किं बंधव णिचिंतउ । महु सुउ विसमावथहिं पत्तउ । हउं तुव सरणि विएसें पत्ती। करहिं गंपि महु पुत्तहु त्तत्ती । महु मणु अच्छइ वहुदुक्खायरु । इय कंदंति णिवारिइ भायरु | अच्छहि कलुणु म कंदहि वहिणी । पुरसयासि सो णिवसइ रयणी ॥ घत्ता ॥ जिं णियउरि धरियउ । खीरें भरीयउ । परपेसणेण जि पोसियउ । मह दुक्खें पालिउं । देहे लालिङ । तं वीसरइ केम हियउ॥ १५ ॥ हा हा अणचिंतिउ दुखु जाउ । वणि किम होसइ सुउ सुद्धभाउ । एक्कल्ली कि मुकिय सुपुत्तू । तुव जीवें जीवमि णेहजुत्त। हा हा किं जाया कुमइ तुज्झ । किं सहु अक्खउ हउ देस गुज्झ । रुल घुलइ सुसइ पुणु दिसि णिएइ । जाणइ महु सुउ एव्वहिं जि T अपभ्रंश- पाण्डुलिपि चयनिका Jain Education International For Private & Personal Use Only (108) www.jainelibrary.org

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