Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 110
________________ पसरइ जेम जोन्ह मयवाहहो। पसरइ जेम कित्ति जगणाहहो। पसरइ जेम चिंत धणहो। पसरइ जेम कित्ति सुकुलीणहो। पसरइ जेम सद्द सूत्तूरहो। पसरइ जेम रासि नहे सूरहो। पसरइ जेम दवग्गि वणंतरे। पसरइ मेह जालु तिह अंवरे। तडि तडयडइ पडइ घणु गज्जइ जाणइ रामहो सरणु पवज्जइ ॥ घत्ता ॥ अमर महाधणु गहिय करु। मेह गइंदे चडेवि जस लुद्धउ। उप्पारि गिंभ णराहिवहो। पाउस राउ नाइ सन्नद्धउ॥१॥ जं पाउस णरिंदु गलगज्जिउ। धूली रउ गिंभणे विसजिउ। गंपिणु मेह विंदे आलग्गउ। तडि करवाल पहारेहिं भग्गउ। जं विवरामुहं वलिउ विसालउं। उठिउ ह भणन्तु उन्हालउ। धगधगधगधगंतु उद्धाइउ। हसहसहसहसंतु संपाइउ। जलजलजलजलंतु पजलंतउ। जालावलि फुलिंग मेल्लंतउ। धूमावलि धयदण्डुब्भेप्पिणु। वर वाउलि खग्गु कड्डेप्पिणु। झडझडझडझडंतु पहरंतउ। तरुवर रिउ भड भजंतउ। मेह महागय घड विहडंतउ। जं उन्हालउ दिट्ठ भिडंतउ॥ घत्ता ॥ धणु अप्फालिउ पाउसेण तडि टंकार फार दरिसंते। चोइवि जलहर हत्थि हड। नीर सराणं णच्चंति सरिउ अक्कंदे। णं कई किलिकिलिंति आणंदे। नं पर हय विमुक्क उग्घोसे। नं वरहिण लवंति परिअसें। णं सरवरह अंस जलोल्लिय णं गिरि हरि सणु मुक्कु रतें ॥२॥ जल वाणासणि घाएं घाइछ। गिंभ णराहिउ रणे विणिवाइछ। दद्दर रडिवि लग्ग नं संजण संजण में गजोल्लिय। नं उल्हविउ दवग्गि विअएं। नं नच्चिय महि विविह पअएं। नं अत्थमिउं दिवायरु दुक्खे। नं पइसरइ रयणि सई सुक्खें। रत्त पत्त तरु पवणायंपिय। के नरि वहिउ गिंभु नं जंपिय॥ घत्ता॥ तेलए काले भयाउरए। विण्णि वि वासुएव वलएव। तरुवर मूले ससीय थिय जोगु लएप्पिणु मुणिवर जेम॥३॥ हरिवल रुक्खमूले थिय जावहि। गयमुह जक्ख मूले थिय जावहिं । गय मुह जक्खु पणासेवि तावहिं । गउ निय निवहो पासु वेवन्तउ। देव देव परिताहि भणंतउ। णउ जाणहुं किं सुरु किं किंनर। किं विज्जाहर गण किं किंनर। धणुहर वीर वडाविउ उब्भेवि। सुत्त महारउ णिलउ निरंभेवि। तं णिसुणेप्पिणु वयणु महाइउ। पूअणु मंभीसंतु........... अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका (96) Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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