Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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विण्णि वि थण। सोहइ वयणु ताहिं जिय ससहरु। णं णंदणजसेण आपंडुरु। गइ मंथर हवेइ चाल्लंतिहे। तहे पुणु सहम वाणि वोल्लंतिहि। खणि खणि जणियपयडुतणभंगइ। जायइ सालसाइ अटुंगइ। दोहलाइ संजायए एयइ। जिणण्हवणाइ सुदाणविवेयइ। पोसि पहुत्ति सेय पक्खए हए वुहवारए चउथितहि संजुए। सयमि सरिक्खे जोए वरियाणए। पढमे करणि चउणाम पहाणए। अंसए पंचमि.......... हो। किउ जम्मुछउ जेहउ। साणंदें इंदें जिणवरहो जइ पर कीरइ तेहउ॥ ४॥ तेण पुत्तेण जाएण जणु तुझु। खे महंतेहि मेहेहि जलु वुटु । दुट्ठपाविट्ठपोरत्थगण तुडु। णंदि वाणंदि देवेहि णहि घुटु । दुंदुहीघोसु कयतोसु हुउ दिव्यु। फुल्ल पप्फुल्ल मेल्लेइ वणु सव्वु। मंदु आणंदुयारी हुओ वाउ। वावि कूवेसु अब्भहिउ जलु जाउ। गोसमूहेहि विखित्तु थणदुद्ध। यंतजंतेहि पहिएहि पहु रुद्ध। तो दिणे छट्टे उक्किट्ठकमसेण । दाविया छट्ठिया ज्झत्ति वइसेण। अट्ठ दो दियहि वोल्लीण छुडु जाय। ताम जा णाम जिणयासु सणुराय। वालु सोमालु देवेंदसमुदेहु। लेवि भत्तीय जाएवि जिणगेहु । तीये पिछियउ पुछियउ मुणिचंदु । मत्तमायंगु णामेण इय छंदु॥ घत्ता॥ मंदरु जह थिरु तिह वुहयणहि। कुंभरासि पभणिज्जइ। महुतणउ तणउ एरिसु मुणिवि मुणिवर णामु रइजइ॥५॥ तं सुणिऊण पणट्ठरईसो। मेहणिघोसु भणेइ जईसो। दिट्ठ तए सिविणंतरि सारो। पुत्तिए तुंगु सुदंसणुमेरो। किज्जउ तेण सुदंसण णामो। सज्जणकामिणिचित्तहिरामो। तो जिणयासें णविवि जईसं। चित्ति पहिट्ठ गया णियवासं। सोहणमास दिणं छुडु वित्तं । वद्धउ पालणयं सुविचित्तं । देवमहीहरि णं सुरवच्छो वद्धइ तत्थ परिट्ठिउ वच्छो। वड्डइ णं वयपालणि धम्मो। वड्डइ णं पियलोयणि पेम्मो। वड्डइ णं णवपावसि कंदो। एस पयासिउ दोघयछंदो॥ घत्ता॥ जगतमहरु ससहरु मयरहरु जिह वढुंतउ भावइ। मणवल्लहु दुल्लहु सज्जणहं। पुरएवहु सुउ णावइ ॥६॥ तरुणिहि हुरुहुल्लरु वुच्चंतउ घणथणसिहरोवरि मुच्चंतउ। पाणियलहि किउ चुंग्विजंतउ एत्तहि पुणु एत्तहि णिजंतउ। करयलु वयणकमलि घलंतउ। काइ वि लोइ झत्ति मेलंतउ। गयहि
अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका
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