Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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फिट्टइ वल्लहे चित्तु चहुट्ट। ण फिट्टइ विंझे महाकरिजूहु । ण फिट्टइ सासइ सिद्धसमूहु । ण फिट्टइ पाविहि पाव कलंकु। ण फिट्टइ कामुयचित्ति झसंकु॥ण फिट्टइ आयहे जो असगाहु सुछंद उ मोत्तियदाम एहु॥ घत्ता॥ अहवा जं जह जेण किर जह अवसमे। उ ण भोगु। सुहदंसणु चिंतइ खवमि कम्म। अभया चिंतइ मइ किउ अहम्मु। सुहदंसणु चिंतइ जगु अणिच्चु । अभया चिंतइ महु पत्त मिच्चु ॥रयडा णाम पद्धडिया॥ घत्ता॥ सुहदंसणु चिंतइ हियइ अवहेरमि अडयणेसाहसु॥ अइसयकल्लाणहे सहिउ। रे जीव अरुहु आराहसु॥ ३१॥ सुलहउ पायालइ णायणाहु। सुलहउ कामाउरि विरहडाहु । सुलहउ णवजलहरे जलपवाहु । सुलहउ वयरायरे वजलाहु । सुलहउ कस्सीरए घुसिणपिंडू। सुलहउ माणससरे कमलसंडू। सुलहउ दीवंतरि विविहभंडू। सुलहउ पाहाणे हेरण्णखंडु। सुलहउ मलयारयले सुरहिवाउ। सुलहउ गयणंगणे उडूणिहाउ। सुलहउ पहुपेसणे कए पसाउ। सलहउ ईसायसे जणे कसाउ। सुलहउ रविकंतमणेहे हुतासु सुलहउ वरलखणे पयसमासु। सुलहउ आगमे धम्मोवएसु। सुलहउ सुकईयणे मइविसेसु। सुलहउ मणुयत्तणे पिउ कलत्तु पर एक्कु जि दुल्लहउ अइपवित्तु। जिणसासणे जं ण कया वि पत्तु। कह णासमि तं चारित्तवित्तु ॥ रयडाणाम पद्धडिया॥ घत्ता॥ एम वियप्पिवि जाम थिउ अविउलचित्तु सुहदंसणु। अभयादेवि विलक्ख हुय। ता णियमणि चिंतइ पुणुपुणु॥ ३२॥ कहि वसंतु कहि उववणु अच्छइ। कहि गरिंदु कीलेवइ गच्छइ। कहिं हउ तहिं पहिठ संचल्लिय। कहि सा डोड्डि चवइ हरिसोल्लिय। कहि पंडियए एह वढ आणिउं। हा मइ होंतु कज्ज ण वियाणिउ। सा मइ सा भावण भाविज्जइ। जाए मरणु वंघणु वाविज्जइ। हठ कवि लाइ लेवि संपेरिय पंडियाए तइयहु जे णिवारिय। हउ जाणंति संति आयहो गुण। काई लग्ग असगाहें णिग्गुण । सगुणसरासणु व्व जइ रुच्चइ । जं ण माइ मुठिहि तं मुच्चइ। एस पाणउ खज्जइ पिज्जइ। एम विगलडाहियए मरिज्जइ। परयारं पि होइ विरुयारं दुस्सहणरयदुखहक्कारं। जा ण केण किं पि वि जाणिज्जइ। ता व.......
अपभ्रंश-पाण्डुलिपि चयनिका
(85)
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