Book Title: Apbhramsa Pandulipi Chayanika Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 99
________________ पुरवाहिरि ॥ १० ॥ परवसुरयहो । अंगारयहो । सूलिहि भरणं जायं मरणं । इय णियवि जणे तोवि मूढमणे । चोरी करए । णउ परिहरए । जो परजुवई इह अहिलसई सो णीससइ गायइ हसइ । विरहिं णडिउ अच्छइ पडिउ णउ रइ लहइ । मित्तहो कहई । जा जाहि तुहुं पच्छेवि लहुं । सा आणि घरे महु लाइ उरे। उवयारसयं । जुंजेइ सयं । कवि होइ सई । णेच्छइ जुवई । ण लहेइ सुहं अइद्दीणमुहं दावेइ जणे जूरेइ मणे । अहो का वि चला। अच्छइ अवला। देउलिसिहरे । तह सुंण्णहरे। गंतूण सयं । किर रमइ रयं । सो सुनिवि सरं । उव्वहइ डरं । थरहरियतणू पंतमणू । णिहुवउ दडइ। णासइ पडई ॥ को वि घरइ करे । आरुहि वि खरे | वित्थारणयं । तह मारणयं । सहिउण जए णिवडइ णरए । उं । सीलु जे जुवइहि मंडणु भासिउं । हरिवि णीय जा किर दहवयणें । सीलें सीय दड्ढ णउ जलणं । तह अणंतमइ सीलगुरुक्किय खयकिराय उवसग्गह चुक्किय । रोहिणि खरजलेण संभाविय। सीलगुणेण णइए ण वहाविय। हरि हलि चक्कवट्टि जिणमायउ अज्ज वि तिहुवणम्मि विखायउ। एयउ सील- कमलसरहंसिउ फणिणरखयरामरहि पसंसिउ । जणणिए छारपुंजु वरि जायउ । णउ कुसीलु मयणेणुम्माइउ । सीलवंतु वुहयणे सलहिज्जइ । सीलविवज्जिएण किं किज्जइ॥ घत्ता॥ इय जणेविणु सीलु पर। पालिज्जइ माइ महासइ । णं तो लाहु णियंतियहो मूल छेउ तुह होसइ ॥ ७ ॥ सीलविहीणहे जणे हाहारउ । होसइ तुज्झ कण्ण कडयारउ । सीलविहीणहे सिय जाएसइ सीलविहीणहे मरणु हवेसइ । इय सुणेवि अभयामहएविय। जंपिज्जइ रोसेण पलीविए । परउवएसु दिंतु वहुजाणउ । सव्वु को वि सासुइउ सयाणउ । किं वहु जंपिएण गरुयारउ जइ वि मज्झु होसइ हाहारउ । जइ दुल्लह संपय जाएसइ । जइ वि विउसि महु मरणु हवेसइ । तइ कासु वि वयणे णवि छंडमि । रइय पइज्जइ अप्पर मंडमि। तासु असंगमि महु मणु जूरइ । दुद्धसंद्ध किं कंजिउ पूरइ । आणिज्जउ सो सुहउ वियढउ । पाय दड्ढ वरि हियउ म दड्ढउ। तो फुड मइ अइरेण मरिज्जइ पारंदिय पद्वडिय भणिज्जइ ॥ घत्ता ॥ पंडिय चिंतइ तं सुणेवि । इह गीहगाहु किर सुम्मइ । इत्थीगाहु तवि गरुड । जें सरायरु तिहुवणु दुम्मइ ॥ ८ ॥ ण फिट्टइ पेयवणे इह गिद्ध ण फिट्टइ पंकए भिंगु पइद्ध । ण फिट्टइ तुंबुरणारयगेउ । ण फिट्टइ पंडिएलोएविवेउ । ण फिट्टइ दुजणे दुठसहाउ। ण फिट्ट णिद्धणेचित्ते विसाउ ण फिट्टइ लोहु महाघणवंति। ण फिट्टइ मारण चित्तु कयंति । ण फिट्टइ जोव्वणएत्ति मरहू । ण अपभ्रंश - पाण्डुलिपि चयनिका (84) Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.orgPage Navigation
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